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सांसत में समंदर

प्‍लास्टिक की समुद्र में भयावह उपस्थिति की चौंकाने वाली रिपोर्ट ‘यूके नेशनल रिसोर्स डिफेंस काउंसिल’ ने जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक प्रत्येक वर्ष दुनिया भर के सागरों में चौदह लाख टन प्लास्टिक विलय हो रहा है। सिर्फ इंगलैंड के ही समुद्रों में पचास लाख करोड़ प्लास्टिक के टुकड़े मिले हैं। प्लास्टिक के ये बारीक कण (पार्टीकल) समुद्री सतह को वजनी बना कर इसका तापमान बढ़ा रहे हैं।

समुद्र में मौजूद इस प्रदूषण के सामाधान की दिशा में पहल करते हुए इंग्लैंड की संसद ने पूरे देश में पर्सनल केयर प्रोडक्ट के प्रयोग पर प्रतिबंध का प्रस्ताव पारित किया है। इसमें खासतौर से उस कपास-सलाई का जिक्र है, जो कान की सफाई में इस्तेमाल होती है। प्लास्टिक की इस सलाई में दोनों और रूई के फाहे लगे होते हैं। इस्तेमाल के बाद फेंक दी गई यह सलाई सीवेज के जरिए समुद्र में पहुंच जाती है। गोया, दुनिया के समुद्रों में कुल कचरे का पचास फीसद इन्हीं कपास-सलाइयों का है।

इंग्लैंड के अलावा न्यूजीलैंड और इटली में भी कपास-सलाई को प्रतिबंधित करने की तैयारी शुरू हो गई है। दुनिया के अड़तीस देशों के तिरानबे स्वयंसेवी संगठन समुद्र और अन्य जल स्रोतों में घुल रही प्लास्टिक से छुटकारे के लिए प्रयत्नशील हैं। इनके द्वारा लाई गई जागरूकता का ही प्रतिफल है कि दुनिया की एक सौ उन्नीस कंपनियों ने चार सौ अड़तालीस प्रकार के व्यक्तिगत सुरक्षा उत्पादों में प्लास्टिक का प्रयोग पूरी तरह बंद कर दिया है।

पानी में प्रदूषण दरअसल हमारी धरती के ही प्रदूषण का विस्तार है, किंतु यह हमारे जीवन के लिए धरती के प्रदूषण से कहीं ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है। माइक्रोप्लास्टिक को लेकर आई रिपोर्ट की गंभीरता को इस बात से समझा जा सकता है कि अगर कोई इंसान सिर्फ बोतलबंद पानी पीता है तो भी एक साल में उसके शरीर में नब्बे हजार प्लास्टिक के टुकड़े पहुंच सकते हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि एक सौ तीस माइक्रोमीटर से छोटे प्लास्टिक के कणों में यह क्षमता है कि वह मानव ऊतकों को विस्थापित करके शरीर के उस हिस्से की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है। इसी तरह ‘यूनिवर्सिटी आफ ईस्ट एंगालिया’ में इकोलाजी के प्रोफेसर एलेस्टयर ग्रांड ने बताया है कि सांस के जरिए शरीर में जाने वाली प्लास्टिक का बहुत छोटा कण ही फेफड़ों में पहुंच पाता है, जो सांस की तकलीफ पैदा कर सकता है।

प्लास्टिक प्रदूषण का चंगुल

मानव जीवन शैली का अनिवार्य हिस्सा बन गया प्लास्टिक पर्यावरणीय संकट के साथ मनुष्य के जीवन के लिए भी बड़ा खतरा बनकर उभरा है। इस पर अब प्रतिबंध लगा दिया गया है। इनमें खासतौर से पेयजल और शीतल पेय के अलावा दैनिक उपयोग में लाई जाने वाली वे प्लास्टिक की थैलियां शामिल हैं, जिनके आसान विकल्प उपलब्ध हैं। इसके अलावा कान साफ करने की सलाई, भोजन करने की थाली, ग्लास, चाकू, कांटे, चम्मच, झंडे, गुब्बारे, आईसक्रीम की छड़ी और रैपर। पर्यावरण ही नहीं, मनुष्य और पशुधन के जीवन के लिए भी प्लास्टिक बड़ा संकट बनकर उभरा है। नवीनतम शोधों से पता चला है कि प्लास्टिक प्रदूषण इंसानों और पशु-पक्षियों के लिए ही नहीं सरीसृपों के लिए भी जानलेवा साबित हो रहा है।

अब प्लास्टिक के कण मनुष्य के पेट में ही नहीं, फेफड़ों तक पहुंच गए हैं। अमेरिका के यार्क मेडिकल कालेज के शोध समूह ने यह हैरानी में डालने वाला खुलासा किया है। सांस के जरिए माइक्रोप्लास्टिक के बारह प्रकार के कण फेफड़ों तक पहुंचे हैं। इसके पहले वैज्ञानिक सांस के माध्यम से फेफड़ों तक प्लास्टिक कणों का पहुंचना असंभव मानते थे।

हालांकि शवों के फेफड़ों में ये कण पहले ही मिल चुके हैं, लेकिन जीवित व्यक्तियों में प्लास्टिक कण होने का खुलासा ‘साइंस आफ द टोटल एनवायरमेंट’ (अप्रैल 2022) जर्नल में छपे शोध-पत्र से ही हुआ है। इस अध्ययन के लिए दर्जनों जीवित इंसानों के ऊतक यार्कशायर के कैसलहिल अस्पताल से लिए गए थे। फेफड़ों से मिले प्लास्टिक कण 5 मिलीमीटर तक के थे। अब वैज्ञानिक मानव के स्वास्थ्य पर इन कणों के पड़ने वाले असर की जांच कर रहे हैं।



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