काम के हक पर रियायत भारी
देश के नव-निर्माण के लिए मेहनत का कोई अर्थ नहीं रह गया है। यह बात पिछले दिनों कुछ इस प्रकार स्पष्ट हो गई कि निरंतर मेहनत करने वालों के माथे का पसीना भी शर्मिंदा हो गया।
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