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क्रोध के चक्रव्यूह में मत फंसिए

इस दौर में क्रोध हमारे जीवन का जरूरी हिस्सा हो गया है। यह जरूर है कि कुछ लोग कम क्रोध करते हैं तो कुछ जरूरत से ज्यादा। कभी किसी इंसान के स्वभाव को देखकर ऐसा महसूस होता है कि यह तो क्रोध करता ही नहीं होगा लेकिन वास्तविकता यह है कि ऐसा इंसान भी यदा-कदा दबे स्वर में क्रोध करता है। हम दूसरों को क्रोध न करने की सलाह तो देते हैं लेकिन स्वयं क्रोध के शिकंजे में आ ही जाते हैं। इसलिए क्रोध से बचना बहुत ही मुश्किल है।

तो फिर क्रोध से बचने का उपाय क्या है ? क्या हमे क्रोध के सामने घुटने टेक देने चाहिए ? कटु सत्य यह है कि क्रोध के सामने घुटने टेक देने से क्रोध हमारे ऊपर हावी हो जाता है। हम इस समस्या को और बढ़ा लेते हैं। जब क्रोध को स्वाभाविक समझकर हम अपने जिम्मेदारी से बच निकलते हैं तो हम इसे बार-बार पनपने का मौका देते हैं। इसलिए हम लगातार चक्रव्यूह में फंसते चले जाते हैं।

सबसे पहले हमें क्रोध को स्वाभाविक समझने की भूल से बचना होगा। वास्तविकता यह है कि क्रोध स्वाभाविक नहीं है। इसलिए यह हमें हानि पहुंचाता है। आश्चर्य यह है कि हम एक तरफ यह हानि सहते रहते हैं और दूसरी तरफ अपना क्रोध भी बढ़ाते रहते हैं। कई बार हम क्रोध को अपनी कमजोरी ढकने का हथियार बना लेते हैं।

ज्यों-ज्यों हम अपनी कमजोरी ढकने के लिए क्रोध का इस्तेमाल करते हैं, त्यों-त्यों हमारी हालत दयनीय होती जाती है। इस दयनीय हालत की वजह से न तो हम अपनी कमजोरी ही छिपा पाते हैं और न ही क्रोध को कम कर पाते है। बल्कि हमारा क्रोध और बढ़ जाता है। यही कारण है कि हमारा गुस्सा हथियार न बनकर अभिशाप बन जाता है।

समस्या यह है कि हम गुस्से को अभिशाप मानने के लिए तैयार नहीं होते हैं। हम बार-बार क्रोध के माध्यम से अपने अहंकार को ही सन्तुष्ट करने का प्रयास करते रहते हैं। इसी वजह से हम क्रोध को समस्या के तौर पर नहीं देखते हैं।

यह ठीक है कि क्रोध को पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता है। इस दौर में जबकि इंसान अनेक तरह के दबाव झेल रहा है, हमें क्रोध बिल्कुल न आए, यह संभव नहीं लगता। हालांकि हमारे धर्मगुरु क्रोध न आने के अनेक उपाय बताते हैं लेकिन क्या इनके माध्यम से हम क्रोध करना छोड़ देते हैं। दरअसल हमारी जिंदगी केवल किताबी उपायों और उपदेशों से नहीं चलती है। जब हमें क्रोध आता है तो इन उपायों के बारे में सोचने का अवसर ही नहीं मिलता है।

इसलिए जरूरत इस बात की है कि हम थोड़ा व्यावहारिक होकर क्रोध खत्म करने के बारे में न सोचकर क्रोध कम करने के बारे में सोचें। अगर हम ऐसा सोचेंगे तो काफी हद तक इस समस्या का समाधान हो जाएगा। जब क्रोध कम होने लगेगा तो धीरे-धीरे खत्म भी हो सकता है। यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि हमारा व्यवहार तुरंत नहीं बदलता है। पहले हम एक उद्देश्य प्राप्त कर लेते हैं तो फिर दूसरा उद्देश्य प्राप्त करने में ज्यादा समस्या नहीं आती है। क्रोध कम करने का लाभ जब हमें मिलने लगेगा तो हम इसी रास्ते पर आगे बढ़ते हुए क्रोध न करने का उद्देश्य भी प्राप्त कर सकते हैं।

सवाल यह है कि क्रोध कम कैसे हो ? सबसे सरल उपाय यह है कि हम दूसरों से अपेक्षा करना छोड़ दें। लेकिन क्या यह सरल उपाय इतना सरल है ? यह ठीक है कि दूसरों से अपेक्षा करना छोड़ा नहीं जा सकता लेकिन ज्यादा अपेक्षाएं कम तो की ही जा सकती हैं। हम अपने बच्चों और सहकर्मियों से लगातार संवाद भी बनाए रखे। होता यह है कि हम अपने बच्चों और सहकर्मियों से कुछ समय तक संवाद बंद कर देते हैं। ऐसी स्थिति में जब कुछ अंतराल के बाद उनके काम में कमी दिखाई देती है तो गुस्सा आना स्वाभाविक होता है। क्रोध आने का कोई एक कारण नहीं होता है। इसलिए क्रोध कम करने का कोई एक उपाय नहीं हो सकता। जरूरत इस बात की है कि हम स्वयं अपना आकलन करें और उसी के अनुसार क्रोध कम करने का प्रयास करें।



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