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पहले IAS, फिर JDU में नंबर दो और अब पतन की ओर, कहानी केंद्रीय मंत्री RCP सिंह की जो एक समय में थे नीतीश के खास

जदयू के कद्दावर नेता आरसीपी सिंह की राजनीति अब नीतीश कुमार के खफा होने की वजह से ढलान पर दिख रही है। कभी आईएएस रहे आरसीपी सिंह कुछ महीनों पहले तक नीतीश के खास थे और पार्टी में नंबर दो की हैसियत थी, लेकिन अब ये पार्टी में हाशिए पर जाते दिख रहे हैं, हालांकि चर्चा ये भी है कि आरसीपी सिंह पार्टी को अलविदा कह सकते हैं।

आईएएस से राजनीति में उतरे- उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी आरसीपी सिंह पहली बार नीतीश के संपर्क में तब आए, जब उन्हें 1996 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के निजी सचिव के रूप में तैनात किया गया। कहा जाता है कि नीतीश और आरसीपी दोनों नालंदा जिले से आते हैं, इसलिए दोनों के बीच संबंध मजबूत होता चला गया। बताया जाता है कि नीतीश कुमार एक अधिकारी के रूप में आरसीपी सिंह के कौशल से प्रभावित थे।

जब नीतीश केंद्र में आए और अटल सरकार में रेल मंत्री बने, तो आरसीपी उनके विशेष सचिव बने। नवंबर 2005 में नीतीश कुमार जब बिहार के सीएम बने तो आरसीपी भी बिहार चले आए। यहां उन्हें नीतीश के प्रधान सचिव के रूप में तैनाती मिली। इसके बाद सरकार और पार्टी दोनों में आरसीपी सिंह का प्रभाव बढ़ता चला गया। 2010 में आरसीपी ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और जद (यू) ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। उन्हें 2016 में फिर से नीतीश ने राज्यसभा भेजा। जिसका कार्यकाल अभी तक चल रहा है।

JDU में नंबर दो- आरसीपी सिंह जिस समय जदयू में आए थे या जब पार्टी पर उनकी पकड़ बढ़ रही थी, पार्टी के कई भरोसेमंद नेता नीतीश से खफा होकर पार्टी छोड़ चुके थे या छोड़ने की तैयारी कर रहे थे। इनमें आज के जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह भी शामिल थे, जिनकी आरसीपी सिंह से छत्तीस का आंकड़ा है। उपेंद्र कुशवाहा, जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव ये वो बड़े नाम हैं जिन्होंने पार्टी को अलविदा कह दिया था। इसके बाद ललन सिंह और कुशवाहा तो पार्टी में लौटे, लेकिन शरद यादव नीतीश से ऐसे दूर हुए कि दूर ही रह गए। पार्टी पर एकछत्र राज आरसीपी सिंह का ही हो गया।

कहां से शुरू हुई नीतीश से दूरी- कहा जाता है कि जिस जदयू नेता की राजनीति दिल्ली में मजबूत हुई, नीतीश ने उसे अपना पावर दिखा दिया। दरअसल मोदी सत्ता में आए तो उन्होंने सहयोगी पार्टियों के लिए एक मंत्री परिषद् की सीट रखने का फैसला किया। जदयू को ये मंजूर नहीं था, उसने दो सीट की मांग की। हालांकि बाद में आरसीपी सिंह एक ही सीट पर मान गए और केंद्र में मंत्री बन गए। यहां आकर उन्होंने पार्टी से अलग अपनी छवि बनानी शुरू कर दी। उधर पार्टी में प्रशांत किशोर का आगमन हो चुका था, पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई, ललन सिंह भी वापस लौट चुके थे। अब पार्टी पर आरसीपी की पकड़ धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगी थी।

राज्यसभा का टिकट कटा- इसके बाद आरसीपी सिंह का नाम लगातार विवादों में आने लगा। बाहुबली विधायक अनंत सिंह के मामले से लेकर मुंगेर केस तक में इनकी बेटी और आईपीएस लिपि सिंह की भूमिका को लेकर सवाल उठते रहे। इसी बीच पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी ललन सिंह के पास चली गई। ललन सिंह, नीतीश के एक समय में काफी करीब थे और उनका एक अपना जनाधार भी है, लेकिन आरसीपी सिंह के पास जनाधार नहीं है। ललन सिंह के पास जब पार्टी की चाबी आई तो दोनों के बीच विवाद होने लगा। यूपी चुनाव के समय बीजेपी-जदयू का गठबंधन नहीं हो पाया, जिसके लिए भी आरसीपी सिंह को ही जिम्मेदार माना गया। दोनों के बीच विवाद चलता ही रहा। इसके बाद जब राज्यसभा चुनाव का समय आया तो नीतीश ने आरसीपी का पत्ता काट दिया। अब आरसीपी सिंह का मंत्रीपद जाना तय माना जा रहा है।



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