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अहसान नहीं कर्तव्य

अगर कोई परिवार का मुखिया अपने परिवार के पालन पोषण करता है, तो क्या उसे यह डंका पीटना चाहिए कि देखो, मैं अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दे रहा हूं, अपने बूढ़े मां-बाप का इलाज करवा रहा हूं, अपने पत्नी का हर जरूरत पूरा कर रहा हूं? क्या ऐसा करना उसे शोभा देता है? मगर ठीक ऐसा ही काम इस समय हमारे प्रधानमंत्री कर रहे हैं। यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को विमान के जरिए देश लेकर आए और कहने लगे कि यह दुनिया में भारत का प्रभाव बढ़ाता है। क्या सचमुच ऐसा है? इसे गलत तरीके से निकासी का नाम दिया गया। हमारे अधिकांश बच्चे अपने जोखिम पर पड़ोसी देशों की सीमा के पार गए। वहां से उन्हें सिर्फ विमान में बिठा कर लाने का काम भारत सरकार ने किया है।

यह काम हर देश कर रहा है। अफ्रीका से लेकर अमेरिका तक की सरकारों ने अपने नागरिकों को वहां से निकाला। तो क्या, उन्होंने कभी ऐसा ढिंढोरा पीटा? हमारे नेता सिर्फ उके्रन के मामले में नहीं, कोरोना के मुफ्त टीके से लेकर गरीबों को मुफ्त राशन देने तक का श्रेय खुद को देने से नहीं चूके। जबकि ऐसा काम दुनिया की हर सरकार ने किया। मगर कभी किसी ने इसकी वाहवाही लूटने की कोई कोशिश नहीं की। सभी ने इसे अपना कर्तव्य समझ कर किया।

जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर
जवानों का मनोबल

सुरक्षा बलों द्वारा खुदकुशी और अपने ही साथियों पर गोलीबारी की घटनाएं राष्ट्रीय चिंता का विषय बन चुकी हैं। पंजाब के अमृतसर में सीमा सुरक्षा बल के जवान द्वारा गोलीबारी में चार जवानों की मौत हो गई, एक जवान घायल है। घटना को अंजाम देने के बाद जवान ने खुद को भी गोली मार ली।

इस तरह की घटनाओं के बाद हर बार रोकने के लिए कदम उठाए जाते हैं, लेकिन समस्या की जड़ पर प्रहार नहीं किया जाता है, जिसकी वजह से बार-बार ऐसी घटनाएं हो रही हैं। सुरक्षाबलों के प्रशिक्षण में मानवीय संवेदना की कमी रह जाती है, जिसकी वजह से ऐसी घटनाएं घट रही हैं। कभी-कभी छुट्टी की कमी और घर की परिस्थितियां भी जवानों को विचलित कर देती हैं और वे अपना संतुलन खो बैठते हैं।

सुरक्षाबलों की मानसिक स्थिति की जांच नियमित कराई जानी चाहिए। ऐसी घटनाएं विक्षिप्त मानसिकता का परिचायक है। हर जवान की जिंदगी अनमोल है, उसकी हिफाजत करना सरकार का कर्तव्य है।
हिमांशु शेखर, केसपा, गया

सशक्त महिलाएं

साल में एक दो दिन ही आते हैं, जब कुछ लोग औपचारिक रूप से सभी महिलाओं को शुभकामनाएं देते हैं। महिलाओं को भी काफी अच्छा लगता है, क्योंकि साल में कुछ ही ऐसे दिन आते हैं, जब लोग उनके हक और सम्मान की बात करते हैं। लेकिन क्या सिर्फ एक दिन उनके हक और सम्मान के बारे में बात करना सही है? स्त्री सशक्तिकरण पर जोर देना और महिलाओं को कैसे खुद के दम पर अपनी पहचान बनाना, इसके बारे में लोगों को बताना और लंबा चौड़ा भाषण देना ठीक है? बिलकुल नहीं, ये सारी बातें किसी भी हद तक सही नहीं हैं।

स्त्री का हर दिन है, वह पहले से सशक्त है, उसे किसी के सहारे की नहीं बस साथ की जरूरत है। आज ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं जहां महिलाएं न हों। हर जगह उन्होंने खुद को साबित किया है। महिलाएं अपने आप में सशक्त हैं, उनको तो बस मौका मिलने की देरी है।
स्मिता उपाध्याय, प्रयागराज

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