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यूक्रेन संकट में दक्षिण एशिया : कौन बना तटस्थ किसका कैसा दांव


रूस के यूक्रेन पर आक्रमण को लेकर दक्षिण एशिया ने अलग ढंग से प्रतिक्रिया दी है। दक्षिण एशियाई देशों की गतिविधियों का भारत पर असर पड़ना स्वाभाविक है, क्योंकि दक्षिण एशियाई अधिकांश देश भारत के पड़ोसी हैं। यूक्रेन संकट को लेकर इस क्षेत्र में भारत और पाकिस्तान की चर्चा होती रही है। लेकिन इस क्षेत्र के कई देश ऐसे रहे हैं, जो तटस्थ रहे या फिर खुलकर पश्चिमी देशों के साथ हो गए। अधिकांश देशों ने रणनीतिगत सवालों पर विचार किए। इसे रूस के हमलों से उत्पन्न नए प्रणालीगत व रणनीतिक बदलावों के बीच राह बनाने की कोशिश माना गया।

श्रीलंका और अफगानिस्तान

भारत ने कूटनीतिक समीकरणों को देखते हुए यूक्रेन संकट में तटस्थ रवैया अपनाया है। संयुक्त राष्ट्र में मतदान के दौरान भारत ने किसी का पक्ष नहीं लिया। अफगानिस्तान और श्रीलंका ने भी ऐसा रवैया अपनाया, जो विश्व समुदाय के लिए चौंकाने वाला रहा। अफगानिस्तान और श्रीलंका ने इस संघर्ष में किसी का पक्ष लेने से इनकार कर दिया और अपने आधिकारिक बयानों में तटस्थता का रुख अपनाया है। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने दोनों पक्षों से संवाद और शांतिपूर्ण तरीकों से यह संकट हल करने को कहा है।

श्रीलंका ने संबंधित पक्षों से कूटनीति और संवाद के जरिए शांति, सुरक्षा और स्थिर ता बनाए रखने का आग्रह किया है। जहां तक अफगानिस्तान का संबंध है, यूक्रेन संकट से उसे दुनिया भर से मिल रही मदद प्रभावित हो सकती है। ऐसे में तटस्थता को तरजीह दी है तालिबान ने, क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय सहायता और मान्यता के लिए बेचैन है। साथ ही, तालिबान की कोशिश अपनी सुधरी हुई छवि को प्रचारित करने की भी हो सकती है।

दूसरी ओर, युद्ध के नतीजों से श्रीलंका के बुरी तरह प्रभावित होने की संभावना है। ईंधन की कीमतों में वृद्धि, बकाया भुगतान में संभावित देरी और रूसी आयातकों से भविष्य की खरीद में सुस्ती श्रीलंका के लिए आने वाली चुनौतियां मानी जा रही हैं। जाहिर है, श्रीलंका की तटस्थता की वजह उसका आर्थिक संकट है। श्रीलंका गंभीर विदेशी मुद्रा संकट और कर्ज की समस्या से जूझ रहा है।

बांग्लादेश की तटस्थता
बांग्लादेश ने तटस्थता की अनाधिकारिक नीति को चुना है। उसने दोनों पक्षों से संवाद और कूटनीति के रास्ते पर लौटने का आग्रह किया है। यह रुख उसके अपने राष्ट्रीय हितों और रूस के संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उल्लंघन से उपजी असहजता के बीच समझौता माना जा रहा है। रूस बांग्लादेश का एक महत्त्वपूर्ण विकास साझेदार है। न्यूनतम विकसित देश (एलडीसी) के दर्जे से ऊपर उठने और अपनी आर्थिक वृद्धि व ऊर्जा सुरक्षा के वास्ते बांग्लादेश के लिए यह साझेदारी अहम रही है।

दोनों देशों का व्यापार अकेले 2020 में 2.4 अरब अमेरिकी डालर का था। यह भी उम्मीद थी कि बांग्लादेश इसी महीने रूस की अगुआई वाले यूरेशियन इकोनामिक यूनियन के साथ मुक्त व्यापार समझौते के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर दस्तखत करेगा। इसके अलावा, रूस ने बांग्लादेश को ऊर्जा सुरक्षा बनाए रखने में मदद जारी रखी हुई है। बांग्लादेश के पहले नाभिकीय विद्युत संयंत्र के लिए रूस तकनीकी और 90 फीसद से ज्यादा वित्तीय सहायता भी मुहैया करा रहा है। रूस ने बांग्लादेश के सैन्य उपकरण, परिधान और उर्वरक उद्योगों में बड़ा निवेश भी किया हुआ है।

नेपाल, भूटान और मालदीव
नेपाल, भूटान और मालदीव की प्रतिक्रियाएं अलग तरह के संकेत दे रही हैं। आक्रमण शुरू होने के समय से ही रूस को लेकर नेपाल कड़ा आलोचक रहा है। उसने संवाद को बढ़ावा देने पर जोर दिया है एवं संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उल्लंघन और यूक्रेन के खिलाफ ताकत के इस्तेमाल को लेकर रूस की निंदा की है। भूटान ने कहा कि वह युद्ध के प्रभावों का अध्ययन व आकलन करेगा।

हालांकि, अपने अच्छे पड़ोसी रिश्तों की बात दोहराकर भूटान ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत छोटे देशों के हित साधन व रक्षा की बात उठाई। मालदीव के विदेश मंत्री ने दोनों पक्षों से शांति और राजनीतिक समाधान तलाशने की बात कही थी, लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस के खिलाफ मतदान किया। नेपाल के रूस और यूक्रेन से संबंध सीमित हैं।

हालांकि, रूस ने नेपाल को हेलिकाप्टर, निवेश और मानवीय सहायता मुहैया कराई है। रूस और नेपाल का कुल व्यापार 2019 में 1.02 करोड़ अमेरिकी डालर का था। यूक्रेन और रूस- दोनों के साथ भूटान के रिश्ते सीमित हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि रूस को लेकर उनकी प्रतिक्रियाएं उनकी अपनी भौगोलिक स्थिति और चिंताओं की उपज हैं। भारत और चीन के बीच स्थित ये देश शक्ति संघर्ष के बीच में हैं।

तिब्बत पर चीनी आक्रमण की घटना इन हिमालयी राज्यों को डराती हैं। भारत और चीन द्वारा सीमा के उल्लंघन और अतिक्रमण का आरोप नेपाल लगाता रहता है। भूटान ने आक्रामक व थोड़ी-थोड़ी करके जमीन हड़पने वाले चीन के साथ अभी तक सीमा निर्धारण नहीं किया है। रूस और यूक्रेन के साथ मालदीव के संबंध मुख्यत: पर्यटन क्षेत्र तक सीमित हैं। रूस और यूक्रेन दोनों मालदीव को कुल पर्यटकों का 20 फीसद से ज्यादा मुहैया कराते हैं।

रूस पर प्रतिबंधों का इधर भी असर

दक्षिण एशियाई देशों ने यूक्रेन संकट को लेकर प्रतिक्रिया अपने राष्ट्रीय हितों को तरजीह देते हुए दी है। हालांकि, ये प्रतिक्रियाएं रणनीतिक एवं तात्कालिक हैं। रूसी आक्रमण से उपजे प्रणालीगत और रणनीतिक बदलावों के बीच राह बनाने की कोशिश हैं। मास्को पर कड़े प्रतिबंध इन राष्ट्रों के व्यापार, पर्यटन, आर्थिक वृद्धि, कनेक्टिविटी, ऊर्जा सुरक्षा, विदेशी मुद्रा भंडार और सैन्य आधुनिकीकरण की नीतियों जटिल बना सकती हैं। इस संकट ने प्रभाव क्षेत्रों की प्रासंगिकता, सुरक्षा के लिए भू-अर्थशास्त्र पर निर्भरता, तटस्थता की संभावनाओं, गठबंधनों और पश्चिम की क्षमताओं पर बहस को छेड़ा है।

क्या कहते हैं जानकार

दक्षिण एशिया के प्रति रूस की बदलती नीति का क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में हो रहे बदलावों के संदर्भ में आकलन किया जाना चाहिए।

  • विष्णु प्रकाश, पूर्व राजनयिक

रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच यह जरूरी है कि भारत रूस के साथ अपने संबंधों की नई रूपरेखा गढ़ने के बारे में सोचे।

  • पिनाक रंजन चक्रवर्ती, पूर्व राजनयिक


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