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विपक्ष का रुख

देश में जब भी कोई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समस्या आती है, तब भारत का विपक्ष अपनी गलत राजनीति करने से बाज नहीं आता। जब भी देश को विपक्ष की आवश्यकता होती है, तभी कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष विरोध में खड़ा हो जाता है। अभी यूक्रेन में फंसे एक भारतीय छात्र की मौत पर पूरा देश गमगीन है। मगर विपक्ष के कई दलों ने सरकार पर टिप्पणी करनी शुरू कर दी है। राहुल गांधी ने यूक्रेन में फंसे नागरिकों की वापसी और छात्र की मौत पर सरकार को घेरते हुए कहा कि भारत सरकार को यूक्रेन से भारतीय नागरिकों की सुरक्षित निकासी के लिए रणनीतिक योजना बनाने की आवश्यकता है, मगर प्रधानमंत्री मोदी हमेशा की तरह नदारद हैं। वहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि यूक्रेन में फंसे भारतीयों की मदद नहीं कर रही भारत सरकार।

अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर विपक्ष का ऐसा रुख कोई नया नहीं है। पहले भी कई बार विपक्षी दल ऐसी राजनीति करते आए हैं। जब भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान देश की रक्षा करते हुए पाकिस्तान की सीमा में गिर गए थे, तब भी कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने सरकार पर उंगली उठाई थी। सर्जिकल स्ट्राइक के समय भारतीय जवानों की वीरता पर गर्व करने की बजाय स्ट्राइक का सबूत मांगा। वायु सेना की ताकत बढ़ाने के लिए फ्रांस से खरीदे लड़ाकू विमान राफेल की खरीद पर भी विपक्ष ने राजनीति करते हुए भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। ऐसे सभी मुद्दों पर विरोध का नेतृत्व कहीं न कहीं कांग्रेस ही करती है।

यूक्रेन मुद्दे पर सरकार को घेरने वाली कांग्रेस और सपा को समझना चाहिए कि ऐसे समय में पार्टी हित नहीं, देशहित ऊपर होता है। इन्हें शायद जानकारी नहीं कि यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को बचाने के लिए भारत सरकार ने अपने चार मंत्रियों को लगाया है। अनुमान है कि यूक्रेन में बीस हजार से अधिक भारतीय नागरिक रहते हैं, जिनमें से सत्रह हजार नागरिक वहां से सकुशल निकल चुके हैं, जिनमें से 3350 भारतीय नागरिकों को आपरेशन गंगा के तहत भारत वापस लाया गया है।

विपक्ष को यह भी समझना चाहिए कि जहां भारत अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए प्रतिबद्ध है, तो वहीं विश्व के बड़े देशों ने अपने नागरिकों को यूक्रेन में उनके हाल पर ही छोड़ दिया है। अमेरिका जैसी महाशक्ति ने अपने नागरिकों को स्वयं निकलने की बात कही है। ब्रिटेन और जर्मनी ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। वहीं चीन ने अपने नागरिकों को कहा है कि अपनी पहचान उजागर करने से बचें। हमारे लिए बड़े गर्व की बात है कि जब कई देशों ने यूक्रेन में अपने दूतावास बंद कर दिए हैं, ऐसी स्थिति में भारत अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए युद्धस्तर पर प्रयासरत है। ऐसी विषम परिस्थिति में विपक्ष को सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए, न कि उनके विरोध में।
ललित शंकर, गाजियाबाद

निराधार विरोध

यूक्रेन की समस्या पर अपने देश के बुद्धिजीवी भी अजीब हैं। वे मोदी की घृणा में देश को संकट में डालने से भी परहेज नहींं कर रहे। उनका पूरा प्रयास है, कि किसी भी तरह मोदी देश के सदाबहार, विश्वासप्राप्त दोस्त रूस से दगाबाजी करें और भारत की अपनी निष्ठावान छवि और मजबूत देश की हैसियत को धक्का लग जाए। ताकि फिर इन्हें मोदी को देश-दुनिया में विफल राजनेता और देश को संकट में डालने वाला प्रधानमंत्री बता कर बदनाम करने की वर्षों पुरानी इनकी इच्छा पूरी हो। ये यूक्रेन को लोकतांत्रिक और रूस को अधिनायकवादी बता रहे हैं।

लेकिन ये सभी चीन, उत्तर कोरिया, यहां तक कि केरल, कश्मीर और प. बंगाल की सरकारों द्वारा हिंदुओं के नरसंहार, हत्याएं, बलात्कार उत्पीड़न करने के मामलों पर मुंह में दही जमा के बैठ जाते हैं। सिर्फ इसलिए क्योंकि वे सभी मोदी के खिलाफ खड़े थे। अब यह बार-बार स्पष्ट होता जा रहा है, कि ये मानवतावाद, लोकतंत्र, नारी सम्मान जैसे महत्त्वपूर्ण विषय इन विपक्षियों के लिए सिर्फ ढकोसला हैं, जो इनके लिए तभी जरूरी होता है, जब इनका एजेंडा उसमें फिट बैठता हो।
युवराज पल्लव, हापुड़

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