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हारी हुई बाजी पलट कर बड़े बाजीगर बने पुष्कर सिंह धामी

आखिरकार हार कर भी जीत गए पुष्कर सिंह धामी। और उत्तराखंड में फिर से पुष्कर राज हो गया। छह महीने पहले जब उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी तब किसे मालूम था कि वे उत्तराखंड में डूबती हुई भाजपा की नैया को कड़े मुकाबले के बाद पार लगा देंगे। धामी के मुख्यमंत्री बनने से पहले राजनीति में यह कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा 15 से 20 सीटों पर सिमट जाएगी।

धामी ने जुलाई 2021 में भाजपा की कमान संभाली और अपने मृदुभाषी मिलनसार व्यवहार के कारण उन्होंने जनता का दिल जीत लिया। 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 47 सीटों पर काबिज हुई परंतु पार्टी के भितरघात के कारण अपनी विधानसभा सीट खटीमा से वे हार गए। इस भितरघात में भाजपा के कई दिग्गज नेताओं के नाम गिनाए जा रहे हैं। परंतु भाजपा आलाकमान ने भी तय कर लिया था कि पार्टी की नैया पार लगाने वाले इस युवा नेता को फिर से राज्य की कमान सौंपी जाएगी और आखिरकार 21 मार्च को भाजपा आलाकमान के दो विशेष दूतों केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और मीनाक्षी लेखी ने धामी के नाम पर मोहर लगा दी।

10 मार्च को जैसे ही धामी के खटीमा विधानसभा क्षेत्र से हारने की खबर आई, पार्टी के कई नेता मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल हो गए। दो सांसद निशंक, अजय भट्ट और छह विधायकों को मुख्यमंत्री का दावेदार माना जा रहा था परंतु आलाकमान धामी के नाम पर किसी भी तरह का कोई समझौता करने को तैयार नहीं था क्योंकि भाजपा ने युवा धामी के चेहरे को ही आगे रख कर चुनाव लड़ा था।

अपने छह महीने के कार्यकाल में धामी ने सरकार और पार्टी के अंदरूनी असंतोष को दूर करते हुए उत्तराखंड के तीर्थ पुरोहितों के देव स्थानम बोर्ड के खिलाफ चलाए गए आंदोलन, सचिवालय कर्मियों तथा अन्य राज्य कर्मचारियों के आंदोलन तथा भूमि सुधार जैसे आंदोलनों को अपनी कुशल प्रशासनिक क्षमता के कारण समाप्त करवाया। इसके अलावा पार्टी के विभिन्न गुटों से भी सामंजस्य बना कर रखा।

धामी ने हारी बाजी पलट कई चेहरों की रंगत ही बदल डाली। राज्य की राजनीति के घाघ नेताओं के बीच युवा धामी बड़े बाजीगर बन कर उभरे हैं। उत्तराखंड में दो दशक के बाद सत्ता परिवर्तन का मिथक टूटा। भाजपा पहला ऐसा राजनीतिक दल है जो लगातार दोबारा सत्ता में काबिज हुआ। विधानसभा चुनाव में हारे हुए मुख्यमंत्री के चेहरे को भाजपा आलाकमान ने फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप कर राज्य की राजनीति में एक नया प्रयोग किया। वहीं धामी अपने राजनीतिक जीवन की दूसरी पारी शुरू करते वक्त और अधिक विनम्र नजर आए।



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