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नीतू : भिवानी की मुक्केबाज का यूरोप में कीर्तिमान

भिवानी के धनाना की रहने वाली नीतू घणघस ने हाल में यूरोप के स्ट्रेंडजा कप में इटली की खिलाड़ी को 5-0 से हराकर स्वर्ण पदक जीता। यह यूरोप का सबसे प्रतिष्ठित और पुराना टूर्नामेंट माना जाता है। नीतू ने 73वें स्ट्रेंडजा मेमोरियल टूर्नामेंट में 48 किलोग्राम भारवर्ग में हिस्सा लिया और कीर्तिमान रचा। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए संघर्ष का लंबा दौर चला। नीतू ने भारत लौटने पर एक समाचार एजंसी से कहा, हमारे गांव में लड़कियों का काफी ज्यादा घर से बाहर निकलना या महत्त्वाकांक्षी होना अच्छा नहीं माना जाता। इसलिए जब मैंने शुरुआत की तो काफी कुछ कहा गया।

नीतू ने सोफिया, बुल्गारिया में आयोजित टूर्नामेंट के फाइनल में इटली की मुक्केबाज को 5-0 से हराया। नीतू के पिता जयभगवान ने बताया कि वे विधानसभा में नौकरी करते हैं। नीतू ने वर्ष 2012 में भिवानी में कोच जगदीश के पास ट्रेनिंग शुरू की थी। इसके बाद वह निरंतर मेहनत करती रही है। वह फिलहाल चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय से एमपीएड की पढ़ाई कर रही है। उसका छोटा भाई अक्षित कुमार शूटिंग का खिलाड़ी है, जिसने हाल ही में राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लिया था।

नीतू ने 2012 में जब पहली बार मुक्केबाजी के ग्लव्स उठाए तो यह उनके गांव में गहरी जड़ें जमा चुकी लड़कियों को ज्यादा बाहर नहीं निकलने देने की मानसिकता और उनके पिता के जज्बे का मुकाबला था। यह युवा मुक्केबाज अंत में विजयी रही। नीतू के मुताबिक, कई चुनौतियों के बावजूद उनके पिता ने मुक्केबाजी में सपने साकार करने के लिए उनकी हौसलाअफजाई की। नीतू के पिता जयभगवान अपनी बेटी के करिअर को लेकर इतने अधिक प्रतिबद्ध थे कि उन्होंने अपनी नौकरी को दांव पर लगा दिया और उधार लेकर अपने परिवार का गुजारा किया। वे अपनी बेटी के करिअर के शुरुआती वर्षों में हमेशा उसके साथ रहे।

18 साल से कम आयुवर्ग में नीतू दो बार विश्व चैंपियन रह चुकी हैं। वे जिस जिले भिवानी से आती हैं, उसने भारत को उसके कुछ सबसे सफल मुक्केबाज दिए हैं, जिनमें ओलिंपिक कांस्य पदक विजेता विजेंदर सिंह भी शामिल हैं। अपनी सफलता को लेकर 21 साल की नीतू ने कहा, उस समय घर में रहने के लिए समाज का दबाव था। 2008 में विजेंदर भैया को बेजिंग ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतते हुए देखने के बाद मैं मुक्केबाज बनना चाहती थी।

वर्ष 2012 में मैंने फैसला किया कि मैं अपने लिए यही चाहती हूं और मेरे पिता ने फैसला किया कि वे मेरी मदद करने के लिए जो कर सकते हैं, करेंगे। इसलिए वे चार साल तक राज्य सरकार की अपनी नौकरी से बिना वेतन छुट्टी पर चले गए और रोज मुझे प्रशिक्षण दिलाने भिवानी मुक्केबाजी क्लब ले जाते। वे मेरे साथ सड़क पर दौड़ते थे, उन्होंने हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाए रखा। परिवार में सभी ने साथ दिया।



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