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बच्चों की फिक्र

यातायात नियमों को धता बताते हुए सड़कों पर चलने वालों में ऐसे लोग भी शामिल होते हैं, जो अपने परिवार के सदस्यों के साथ सफर कर रहे होते हैं। लेकिन ज्यादा अफसोस की स्थिति तब देखी जाती है, जब दुपहिया वाहनों पर भी कुछ लोग छोटे बच्चों को अपने पीछे बिठाए कहीं जा रहे होते हैं। प्रथम दृष्टया ही देखा जा सकता है कि मोटरसाइकिल पर पीछे बैठा बच्चा चालक को पकड़े तो होता है, लेकिन असुरक्षित होता है।

सामान्य रफ्तार में भी बहुत छोटी-सी चूक या वाहन के असंतुलित होने से बच्चा गिर जा सकता है और कोई बड़ा नुकसान हो सकता है। ऐसी आशंका लगातार बने रहने के बावजूद लोग आमतौर पर अपनी ओर से कोई सुरक्षा और सावधानी सुनिश्चित करने को लेकर पर्याप्त गंभीरता नहीं बरतते हैं। नतीजतन, कई बार हादसे का शिकार दुपहिया चलाने वाला तो होता ही है, उस पर बैठा बच्चा भी उसकी चपेट में आ जाता है।

हालांकि देश में सड़क हादसों में चार साल से कम उम्र के बच्चों की मौतों को लेकर अब तक कोई विशेष आंकड़ा सामने नहीं आया है। मगर अच्छा है कि समय रहते सड़क हादसों में होने वाले नुकसान को कम करने के लिए सरकार नया नियम लागू करने जा रही है, ताकि दुपहिया पर छोटे बच्चों की सवारी को ज्यादा से ज्यादा सुरक्षित बनाया जा सके। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने पंद्रह फरवरी को एक अधिसूचना के माध्यम से केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम, 1989 के नियम 138 में संशोधन किया है और चार साल से कम उम्र के बच्चों को दुपहिया पर ले जाने के लिए सुरक्षा उपायों से संबंधित नए मानदंड निर्धारित किए हैं।

इसके मुताबिक अब अगर कोई व्यक्ति दुपहिया पर नौ महीने से लेकर चार साल तक के बच्चे को बिठा कर ले जाता है तो उसे बच्चे को भी हेलमेट और सुरक्षा बेल्ट पहनाना होगा। इसके अलावा, इस आयु वर्ग का बच्चा अगर दुपहिया पर बैठा हो, तो उसकी रफ्तार चालीस किलोमीटर प्रतिघंटा से ज्यादा नहीं होगी। इन नियमों के उल्लंघन पर एक हजार रुपए जुर्माना और तीन महीने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस निलंबित करने का प्रावधान किया गया है। जाहिर है, नए नियमों के लागू होने पर बच्चों के अनुकूल विशेष हेलमेट और ‘सेफ्टी हार्नेस’ बेल्ट की जरूरत होगी।

दरअसल, ज्यादातर सड़क हादसों का कारण या तो वाहन चालक की लापरवाही होती है या फिर नियम-कायदों का उल्लंघन होता है। किसी मामूली चूक की वजह से वाहन में सवार लोगों की जान जा सकती है या फिर बाकी जीवन के लिए शरीर में स्थायी नुकसान झेलने की नौबत आ जाती है। ऐसी स्थिति में बच्चों पर खतरा ज्यादा रहता है। यह अपने आप में एक बड़ी विडंबना है कि सड़कों पर वाहन चलाते हुए लापरवाही बरतने वाले कुछ लोग न तो अपनी फिक्र करते हैं, न ही दूसरों की।

दूसरी ओर, किसी हादसे से बचाव के इंतजाम के लिए पहले से ही खुद को सुरक्षित रखने के उपायों को लेकर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है। नतीजा यह होता है कि अचानक हुए हादसों में जिन लोगों की मौत हो जाती है, उन्हें बचाया जा सकता है। ऐसे जोखिम की जद में बच्चे ज्यादा होते हैं। उम्मीद है कि लोग जिस तरह अपने बच्चों का खयाल रखने के लिए हर संभव कदम उठाते हैं, उसी क्रम में दुपहिया पर उनकी सुरक्षित सवारी भी सुनिश्चित करेंगे और नियमों के पालन को लेकर सजग रहेंगे।

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