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महाशिवरात्रि: शिवत्‍व की प्राप्ति का महापर्व

पूनम नेगी

भगवान शिव यानी सर्वसमाज के महानतम देवता। भोले बाबा के लिए सभी एक समान हैं। इसी कारण महाशिवरात्रि मनाने का अधिकार ब्राह्मण से लेकर चंडाल तक सभी को है। महायोगी शिव असीम गुणों के भंडार हैं फिर भी इतने सरल कि सिर्फ पानी और पत्ते तक पूजन कर दो तो खुश हो जाएं। कोई मेवा-मिष्ठान, फल-फूल नहीं चाहिए। संसार के कल्याण के लिए कालकूट विष को सहज ही ग्रहण कर लेने वाले देवों के देव। इन्हीं महादेव शिव की कृपा प्राप्त करने का सर्वाधिक फलदायी मुहूर्त है फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की तिथि महाशिवरात्रि।

महाशिवरात्रि वस्तुत: भगवान शिव की विराट दिव्यता का महापर्व है। सनातन हिंदू दर्शन के अनुसार शिव अनंत हैं। शिव की अनंतता भी अनंत है। भारतीय दर्शन में त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को सृष्टि का संचालक माना जाता है। ब्रह्मा-सृजन, विष्णु-पालन व महेश-संहार के देवता। विश्वेश्वर संहिता में सूतजी शिव तत्व का महत्त्व बताते हुए कहते हैं- एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मस्वरूप होने के कारण निराकार और साकार दोनों हैं। जो अपनी तीन विभूतियों के माध्यम से सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करते हैं। इन्हीं विशिष्ट गुणों के कारण त्रिदेवों में उन्हें महादेव व देवाधिदेव कहा जाता है।

भगवान शिव सृष्टि के कल्याण के देवता हैं जैसा कि उनके नाम से ही प्रकट है। लेकिन उन्हें प्रसन्न करने के लिए भक्त का स्वयं को उनके अनुसार ढालना जरूरी है। शिव ने सृष्टि के कल्याण के लिए समुद्र मंथन से उत्पन्न विष को अपने कंठ में उतारा और नीलकंठ बन गए। उन्हीं की कृपा से देवताओं को अमृत सुलभ हो सका। उन्होंने ही देवनदी गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर पृथ्वी पर लाने का मार्ग प्रशस्त किया। शिव जी के मस्तक पर सुशोभित चंद्रमा प्रेरणा देता है कि हम चौथ के चंद्र न बन द्वितीया के चंद्र के समान सभी को सुख-शांति एवं शीतलता प्रदान करें।

भूत भावन भगवान के परिवार में भूत-प्रेत, सर्प-बिच्छू, सांड़ और सिंह, मयूर एवं सर्प, सर्प और चूहा जैसे विरोधी स्वभाव के प्राणियों का परस्पर प्रेम पूर्वक रहना यह सीख देता है कि हम बिना किसी भेदभाव के सभी को साथ लेकर चलें और किसी से बैर-भाव न रखें। शिव का अपने शरीर पर श्मशान की राख मलना हर पल मृत्यु को याद रखने का शिक्षण देता है ताकि हम सभी साफ-सुथरा निष्कलंक जीवन जी सकें।

भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से जिस तरह कामदेव को भस्म कर दिया था, वैसे हमें स्वयं व समाज से अनैतिकता, अश्लीलता और कामुकता को दूर करने को कमर कसकर जुटे रहें। उनका मुंडों की माला पहनना सिखाता है कि हमें अपने क्रोध को वश में रखना चाहिए। आक, धतूरा, भांग आदि नशीली वस्तुएं शिव को चढ़ाने की जो परिपाटी है, उसके पीछे निहितार्थ यह है कि प्रत्येक वस्तु /व्यक्ति के अच्छे-बुरे दोनों पहलू होते हैं, हमें इन नशीले व विषाक्त पदार्थों के शुभ तत्व (औषधीय गुण) को स्वीकार कर अशुभ को त्याग देना। ऐसी अगणित प्रेरणाएं शिव से जुड़ी हैं।

जैसे त्रिनेत्र-विवेक से काम दहन, वस्त्र के नाम पर केवल मृगछाल धारण करना अपरिग्रह का के प्रेरणा देता है। अपरिग्रही व्यक्ति सदैव पूजनीय होते हैं। उनका जीवन संसार में शांति स्थापित करने के लिए होता है। सूत्र है ‘शिवोभूत्वा शिवं जयेत’ यानी हमारा जीवन भगवान शिव के समान सृष्टि के कल्याण में लगे, उनकी विशेषताएं हमारे मन-मस्तिष्क में प्रविष्ट हो जाएं, उनका सही शिक्षण हमारे जीवन में चरितार्थ होने लगे, यही सच्ची व सार्थक शिव पूजा का मूल है।

महाशिवरात्रि का पावन पर्व प्रत्येक साधक से आह्वान करता है कि यदि अपनी और दूसरों की सुख -शांति चाहते हो तो अपरिग्रह, सादा जीवन, उच्च विचार, परोपकार, समता, पर दु:ख कातरता और परमात्मा के सामीप्य को ग्रहण करो। केवल अपनी उन्नति में ही संतुष्ट न रहो वरन दूसरों की, अपने समाज व राष्ट्र की उन्नति में अपना पूरा योगदान हो। इन संदेशों को यदि हम अपने अंत:करण में स्थान देकर कार्यरूप में परिणत कर सकें तभी हम महाकाल के सच्चे अनुयायी-अनुचर कहलाने के अधिकारी होंगे।

शिव को औघढदानी कहा जाता है। शिव का जो कल्याण करने का भाव है, वही शिवत्व है। शिवोहं का उद्घोष वही कर सकता है, जो अपने भीतर इस शिवत्व को धारण कर उसे अपने आचार-व्यवहार में उतार लेता है। देवाधिदेव महादेव की कृपा पाने का अमोध सूत्र है महामृत्युंजय महामंत्र- ‘त्रयंबक यजामहे सुगंधिं पुष्टि वर्धनं उवार्रुकमिव बंधनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।’ देवाधिदेव महादेव का यह दिव्य देवमंत्र इतना सशक्त व प्राणवान है कि सच्चे व निष्कलुष मन से किया गया इसका जप मुर्दे में भी प्राण फूंक देता है। आध्यात्मिक मनीषियों की मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन सच्चे हृदय से इस देवमंत्र से की गई भोलेनाथ की आराधना शिवत्व प्रदान करती है।

वर्तमान के घोर स्वार्थी समाजिक परिवेश में, जब इंसान ही इंसान की जान का दुश्मन बना हुआ है। मानवीय संवेदनाएं व सद्भाव खत्म होते जा रहे हैं। चांद व मंगल छूने के बावजूद हमारे समाज में हिंसा, छुआछूत, भेदभाव, भ्रष्टाचार, भूत-प्रेत, टोने-टोटके आदि कुरीतियां गहरी जड़ें जमाए हुए हैं, ऐसी विषम परिस्थितियों में भगवान शिव से जुड़ी ये कल्याणकारी शिक्षाएं अत्यन्त उपयोगी साबित हो सकती हैं। जो व्यक्ति भगवान शिव के समान जब स्वार्थ का परित्याग कर परमार्थ को अपनी साधना, आराधना समझेगा, वही शिवत्व को प्राप्त कर सकेगा।

दिव्य ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव
महादेव शिव के निर्गुण-निराकार स्वरूप की पूजा शिवलिंग के माध्यम से होती है। शिवलिंग की पूजा का अर्थ है कि समस्त विकारों और वासनाओं से रहित रह कर मन को निर्मल बनाना। ईशान संहिता के अनुसार महाशिवरात्रि को ही इस दिव्य ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। महाशिवरात्रि को शिव पार्वती के विवाह की रात्रि भी माना जाता है। वैदिक हिंदू दर्शन इस तिथि को शिव-शक्ति (पुरुष एवं प्रकृति) के महामिलन की रात्रि मान कर इस दिवस को सृष्टि का प्रारंभ मानता है। इसे आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने के लिए शिव एवं शक्ति का योग भी कहा गया है।

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