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पंक्ति के अंतिम व्यक्ति की चिंता

प्रभात झा

दीनदयालजी का मानना था कि पहले लोगों की मनोवृत्ति का जागरण करना होगा। उनकी सृजनशीलता द्वारा उन्हें स्वयं अपने आधार पर खड़ा करना होगा। स्वावलंबन मानव की पहली आवश्यकता है। क्या बिना स्वावलंबन के कोई स्वाभिमानी हो सकता है? जिस समाज या जिस देश में स्वावलंबन नहीं, उस देश को संसार में सम्मान नहीं मिल सकता।

एक दिन अचानक केदारनाथ साहनी जी का फोन आया। उन्होंने मुझे अपने कमरे में बुलाया। मैं पहुंचा तो उन्होंने कहा कि दीनदयालजी के साथ कार्य करने वाले अब देश में कुछ ही लोग बचे होंगे, इसलिए मुझे लगता है वैचारिक दृष्टि से जब पुस्तक छपे तो छपे, अभी उन लोगों से चर्चा कर उनके बारे में संस्मरण जरूर इकट्ठा कर लेना चाहिए। मैं दूसरे दिन समय लेकर ‘कमल संदेश’ की टीम लेकर उनके कमरे में पहुंच गया। टीम के सभी सदस्यों ने उनकी वैचारिक कल्पना को पहले समझा। साहनीजी ने देश भर के उन नामों को रखने की कोशिश की, जो दीनदयालजी के साथ वर्षों काम कर चुके थे। फिर हमने बैठक की और इस कार्य को युद्ध स्तर पर करने का निर्णय लिया। हमने तय किया कि संस्मरणों की इस पुस्तक का नाम ‘अजातशत्रु’ होगा।

उस पुस्तक के लिए आए संस्मरणों में अटलजी, आडवाणीजी और नानाजी देशमुख के संस्मरण उल्लेखनीय हैं। अटलजी ने अपने संस्मरण में लिखा है कि पंडित दीनदयालजी का जीवन एक समर्पित जीवन था। शरीर का कण-कण और जीवन का क्षण-क्षण उन्होंने राष्ट्रदेव के चरणों में चढ़ा दिया था। संपूर्ण देश उनका घर था, सारा समाज उनका परिवार। उनकी आंखों में एक ही सपना था, उनके जीवन का एक ही व्रत था। राजनीति उनके लिए साधन थी, साध्य नहीं। यह मार्ग था, मंजिल नहीं। वे राजनीति का आध्यात्मीकरण चाहते थे।

दीनदयालजी भारत के उज्ज्वल अतीत से प्रेरणा ले उज्ज्वलतर भविष्य का निर्माण करना चाहते थे। उनकी आस्थाएं सदियों पुराने अक्षय राष्ट्रजीवन की जड़ों से रस ग्रहण करती थीं, किंतु वे रूढ़िवादी नहीं थे। भविष्य के निर्माण के लिए वे भारत को समृद्धशाली आधुनिक राष्ट्र बनाने कि कल्पना लेकर चले थे। वे बंधे-बंधाए रास्ते पर चलने के हामी नहीं थे। इसलिए उन्होंने भारतीय जनसंघ का ऐसा स्वरूप विकसित किया, जो अतीत की गौरव गरिमा को लेकर चलता हो और जो आने वाले कल की चुनौतियों का सामना करने के लिए सन्नद्ध हो।

दीनदयालजी को कभी किसी पद ने मोहित नहीं किया। वे संसद सदस्य नहीं थे, लेकिन संसद सदस्यों के निर्माता थे। उन्होंने कभी पद नहीं चाहा। बड़ी मुश्किल से उन्होंने जनसंघ के अध्यक्ष का पदभार संभाला था। उनकी अध्यक्षता में 1967 में कालीकट अधिवेशन बड़े उत्साह और सफलता के साथ संपन्न हुआ। देश विदेश के लोगों ने कहा कि कालीकट में जनसंघ ने नया रूप धारण किया है।

लालकृष्ण आडवाणीजी ने जो बताया, उससे लगता है कि अगर आडवाणीजी की बात दीनदयालजी मान लिए होते तो उस समय उनकी संदिग्ध मौत नहीं होती। आडवाणीजी अक्सर कहा करते थे कि दीनदयालजी हम आपको एक स्टेनो देते हैं। वह आपके साथ रहेगा। आप ट्रेन में भी उसे कहेंगे तो वह लिखता रहेगा। फिर एक न एक व्यक्ति आपके साथ तो रहना चाहिए। हम सभी लोग प्रबंध कर देंगे। यहां तक कि जब वे मुगलसराय के लिए प्रवास पर दिल्ली से निकले थे, उसके पूर्व भी जब आडवाणीजी मिलने गए थे, तो यही आग्रह किया था। पर उन्होंने कहा ‘नहीं भाई, मैं अपना काम स्वयं कर लेता हूं और लिखने का भी स्वयं कर लूंगा।’ काश! दीनदयालजी उनकी बात मान लिए होते।

नानाजी देशमुख ने अपने संस्मरण में लिखा है कि दीनदयालजी के जीवन का प्रत्येक प्रसंग ही नहीं, जीवन का एक-एक क्षण प्रेणास्पद रहा है। एक दिन प्रात: दीनदयालजी नानाजी देशमुख के साथ सब्जी खरीदने बाजार गए। दो पैसे कि सब्जी ली। लौट कर घर पहुंचने को ही थे कि दीनदयालजी एकाएक रुक गए। उनका एक हाथ जेब में था, वे बोले, ‘नाना, बड़ी गड़बड़ हो गई।… मेरी जेब में चार पैसे थे, उनमें से एक पैसा खोटा था। वह पैसा ही उस सब्जी वाली को दे आया हूं। मेरी जेब में बचे दोनों पैसे अच्छे हैं। चलो उसे ठीक पैसा दे आएं।’

दीनदयालजी के चेहरे पर एक अपराधी जैसा भाव उतर आया था। दोनों वापस सब्जी वाली के पास पहुंचे। उसे वास्तविकता बताई तो कहने लगी, ‘कौन ढूंढ़ेगा तुम्हारा खोटा पैसा? जाओ जो दे दिया सो दे दिया।’ पर दीनदयालजी नहीं माने। उन्होंने उस वृद्धा के पैसे के ढेर से अपना चिकना खोटा सिक्का ढूंढ़ निकाला। उसके बदले में अपनी जेब से दूसरा अच्छा पैसा वृद्धा को दे दिया। तब कहीं जाकर उनके चेहरे पर संतोष का भाव उभरा।

नानाजी देशमुख कहा करते थे कि भारत बहुत बड़ा देश है। यहां जमीन कम, लोग अधिक हैं। अधिक लोगों को काम पर लगाने से ही देश का भला होग। आज अगर देश के प्रत्येक जिले में दीनदयाल शोध संस्थान जैसे रचनात्मक कार्य करने वाले संस्थान खड़े हो जाएं, तो देश आर्थिक रूप से स्वतंत्र ही नहीं होगा, बल्कि देश का स्वावलंबन बढ़ेगा और विश्व में हम स्वाभिमान से भारत माता का मस्तक ऊंचा कर सकने में सफल होंगे। जिस दिन ऐसा होना शुरू हो जाएगा, तब हम पंडित दीनदयालजी के इस कथन को कि ‘समाज के अंतिम छोर पर खड़े अंतिम व्यक्ति का विकास ही मेरे देश के विकास का मानदंड होना चाहिए’ को सफल बना पाएंगे।

दीनदयालजी का मानना था कि इस देश का भला तब तक नहीं होगा जब तक हम गांव के लोगों को शिक्षित, संपन्न और योग्य नहीं बनाएंगे। भारत का विकास इसके बिना संभव नहीं। उनके पैर की बिवाइयां फट गई हैं, उनको भरने की कोशिश नहीं करेंगे, उन्हें पर्याप्त वस्त्र नहीं हैं, उनके तन ढकने का इंतजाम करना होगा। उनके बच्चों को कुपोषण से बचाते हुए उन्हें पोषक आहार का प्रबंध करना होगा। उनमें से प्रत्येक को लाभदायी रोजगार उपलब्ध नहीं कराएंगे। उनके रहने की आवास की व्यवस्था नहीं होगी, उन्हें मानवीय सुविधा उपलब्ध नहीं करा पाएंगे, तब तक भारत का भला नहीं हो सकता। अगर ऐसा कर पाए तो भारत का विकास होगा और भारत की आत्मा को शांति मिलेगी।

दीनदयालजी का मानना था कि पहले लोगों की मनोवृत्ति का जागरण करना होगा। उनकी सृजनशीलता द्वारा उन्हें स्वयं अपने आधार पर खड़ा करना होगा। स्वावलंबन मानव की पहली आवश्यकता है। क्या बिना स्वावलंबन के कोई स्वाभिमानी हो सकता है। जिस समाज या जिस देश में स्वावलंबन नहीं, उस देश को संसार में सम्मान नहीं मिल सकता। देश आजाद हुआ। हमें स्वाधीनता मिली। हमें हर गांव में स्वाधीनता का माहौल पैदा करना चाहिए था। हमें स्वतंत्रता इसलिए मिली कि हम स्वाधीन राष्ट्र के स्वाभिमानी नागरिक बनें। व्यक्ति, परिवार और देश के बारे में दीनदयालजी की यही आकांक्षा थी।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भले ही दीनदयालजी के साथ काम न कर पाए हों, पर उनके विचारों को अपनी योजनाओं के माध्यम से समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को आधार मान कर ही गरीबी मिटाने का कार्य प्रारंभ किया है। देश के वंचित लोगों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने की दिशा में अटलजी ने शुरुआत की, नरेंद्र मोदी जी इसे आगे बढ़ा रहे हैं।

स्किल इंडिया मिशन, सुगम्य भारत अभियान, मुद्रा योजना, स्वच्छता, हर घर जल, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, स्वामित्व योजना, प्रधानमंत्री-स्वनिधि योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, आयुष्मान भारत, जन-औषधि केंद्र, उज्ज्वला योजना, उजाला योजना, नई रोशनी, उड़ान योजना, प्रधानमंत्री कुसुम योजना, मातृत्व वंदना योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण तथा शहरी), कर्मयोगी मानधन योजना, प्रधानमंत्री अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान, अंत्योदय अन्न योजना, आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना सहित सौ से अधिक जन-कल्याणकारी योजनाएं हैं, जिनके माध्यम से दीनदयालजी का सपना साकार हो रहा है।
(लेखक भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)

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