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पवित्र नदियों के संगम पर स्नान का विशेष महत्व

विक्रम संवत पंचांग के अनुसार पवित्र माघ माह 11वां मास हिंदू धर्म में माना जाता है। इस साल 17 जनवरी से पवित्र माघ माह शुरू हो गया है और 18 फरवरी तक चलेगा। माघ पूर्णिमा के दिन इसका समापन होगा। हिंदू पंचांग के अनुसार पूर्णिमा पर मघा नक्षत्र होने के कारण इसका नाम माघ माह रखा गया है। इस महीने प्रयागराज संगम के तट और उत्तराखंड में पंच प्रयागों- विष्णु प्रयाग ,देव प्रयाग, रूद्र प्रयाग नंद प्रयाग और कर्ण प्रयाग में स्नान व्रत ध्यान करने का विशेष महत्व है। प्रयागराज में तो संगम के तट पर 1 महीने का कल्पवास रखा जाता है। श्रद्धालु एक महीने तक कल्पवास करते समय संयमित जीवन व्यतीत करते हैं।

इस पुण्य महीने में कई बड़े व्रत और पर्व आते हैं। इस महीने तीर्थ स्नान, दान और पूजा-पाठ करने से जाने-अनजाने में किए गए पापों से नदियों के संगम में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुण्य फल मिलता है। साधकों के लिए यह महीना अत्यंत पुण्य दाई और तपस्या के लिए सिद्ध महीना माना जाता है इसीलिए इस माह को पापों से मुक्ति दिलाने वाला मास कहते है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत के समय धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने संबंधियों को मोक्ष प्रदान करने के लिए माघ माह में संगम के तट पर कल्पवास किया था। नदियों के संगम तट पर माघ मास में पूजा-पाठ करने और संयमित जीवन व्यतीत करते हुए उपवास करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और मोक्ष प्राप्त करके श्रद्धालु जीवनोपरांत विष्णु लोक को प्राप्त करते हैं

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माघ माह में सभी नदियों के जल को गंगातुल्य माना जाता है, इसलिए यदि कोई श्रद्धालु गंगा स्नान करने नहीं जा सकते तो वे श्रद्धापूर्वक किसी भी नदी में स्नान करते हैं तो उन्हें गंगा स्नान के बराबर पुण्य मिलता है और भगवान हरि की कृपा प्राप्त होती है घर में पानी में गंगाजल डालकर स्नान करने से भी इस महीने गंगा स्नान के बराबर फल की प्राप्ति होती है।

इस माह में विष्णु जी के अवतार भगवान कृष्ण को रोजाना पीले पुष्प और पंचामृत अर्पित और मधुराष्टक का पाठ भी नियमित रूप से करना चाहिए और भगवान विष्णु को तिल अर्पित करने का इस महीने विशेष में विशेष महत्व है। अन्न, वस्त्र, धन का दान करने का विशेष महत्व माना गया है। साथ ही गीता और रामायण का पाठ करने का इस महीने में विशेष महत्व माना गया है।

पुण्य पवित्र माघ माह को मौसम बदलने का माह भी कहा जाता है , इसलिए आयुर्वेद शास्त्र में कहा गया है कि माघ माह के समय दिनचर्या और खान-पान में भी कुछ बदलाव करने चाहिए। इस समय हल्का और सुपाच्य भोजन करना स्वास्थयवर्द्धक रहता है। माघ माह में गारिष्ठ भोजन करना वर्जित माना गया है। माघ माह में एक समय भोजन करना स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभदायक माना गया है।

माघ माह में उत्तरायण की वजह से सूर्य का प्रताप प्रबल होता है। माघ महीने में सूर्य की गर्मी तेज होना शुरू हो जाती है सर्दी का मौसम धीरे-धीरे बीतना शुरू हो जाता है। पंडित मनोज त्रिपाठी का कहना है कि माघ महीने में किए गए पुण्य कार्यों का फल हमेशा कई जन्मों तक मिलता है। माघ मास के विषय में पुराणों में कहा गया है कि जो भी श्रद्धालु बड़े मनोभाव से जरूरतमंद की मदद करता है और ब्रह्मावैवर्त पुराण का दान करता है, उसे ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है।

भगवान नारायण को प्राप्त करने के लिए माघ महीना सबसे उत्तम माना गया है। मान्यता है कि माघ महीने में भगवान विष्णु को नियमित तिल अर्पित करने और तिल का उच्चारण मात्र से पाप का प्रभाव तिल-तिल कर क्षय होने लगता है। नियमित तिल खाने और जल में तिल डालकर स्नान करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है। इस महीने तुलसी की नियमित पूजा करनी चाहिए और तुलसी के आगे सुबह-शाम दीप जलाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और आर्थिक स्थिति भी अत्यंत सुदृढ़ होती है।

पद्म पुराण के अनुसार माघ महीने में जप, होम और दान का विशेष महत्व है। माघ महीने में भगवान विष्णु के वासुदेव रूप की पूजा की जाती है। साथ ही उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। इस महीने सूर्य के त्वष्टा रूप की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार इस महीने में भगवान कृष्ण और शिव की पूजा का विशेष विधान है और धार्मिक मान्यता है कि माघ महीने में मंगल और गुरुवार का व्रत करने का विशेष फल मिलता है।माघ मास में षटतिला एकादशी, मौनी अमावस्या, गुप्त नवरात्र, बसंत पंचमी, रथ सप्तमी, भीष्म अष्टमी, जया एकादशी और माघ पूर्णिमा जैसे पर्वों का विशेष महत्व है।

साधक लोग माघ मास की गुप्त नवरात्र का व्रत और देवी की साधना करके अक्षय ऊर्जा प्राप्त करते हैं। माघ महीने में तिल के तेल के दीपक से शिव की पूजा करने का विशेष महत्व माना गया है और वास्तु के अनुसार गृह प्रवेश के लिए माघ महीना अति उत्तम माना जाता है।

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