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इंटरनेट पर नफरती ‘ऐप’ : कट्टरपंथ की ओर खुलते झरोखे

एक समुदाय विशेष की महिलाओं को निशाना बनाने वाले ‘बुली बाई’ और ‘सुल्ली डील्स’ जैसे सोशल मीडिया मंच वाले अभियानों के पीछे नफरत की काली दुनिया है। इस लोक में युवाओं के दिलो-दिमाग को कट्टरपंथी रंग में रंगा जा रहा है। इंटरनेट के इन नफरती ऐप को संचालित करने के मामले में मुंबई और दिल्ली पुलिस ने अभी तक जिन लोगों को गिरफ्तार किया है, उन्हें डिजिटल दुनिया में विभिन्न मंच पर ‘ट्रैड्स’ के नाम से जाने जा रहे समूहों का हिस्सा बताया जा रहा है। ‘ट्रैड्स’ यानी परंपरावादी।

हालांकि, सोशल मीडिया पर इस समूह ‘ट्रैड्स’ की गतिविधियां किसी परंपरा को संजोने पर उग्र और चरमपंथी विचारों को नफरती अंदाज में फैलाने पर केंद्रित हैं। ‘ट्रैड्स’ पर सक्रिय लोग अपने-अपने गुट में साइबर जगत में नफरत और उत्पीड़न संगठित तरीके से करते हैं। ऐसे गुटों की साइबर हिंसा से कोई नहीं बचा- हिंदू, मुसलमान, दलित, मुसलिम, इसाई, सिख – कोई नहीं। ये गुट अपने समूहों में ना सिर्फ विचारों के जरिए बल्कि सक्रिय रूप से भी हिंसा को बढ़ावा देते हैं।

महिलाएं आसान निशाना

‘बुली बाई’ और ‘सुल्ली डील्स’ ऐप के जरिए खुलकर समुदाय विशेष की महिलाओं की नीलामी की जा रही थी। इन ऐप के साथ ही अब एक और सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिए बहुसंख्यक समुदाय की महिलाओं को निशाना बनाने का मामला सामने आया है। इस प्लेटफार्म को लेकर जांच जारी है, इसलिए सुरक्षा एजंसियां ज्यादा खुलासा नहीं कर रहीं। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव के मुताबिक, ऐप टेलीग्राम पर कथित रूप से हिंदू महिलाओं को लक्षित करने वाले एक चैनल को ब्लाक किया गया है।

सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने भी ट्वीट कर जानकारी दी कि उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह मेटा को ऐसे पेजों को तत्काल हटाने का निर्देश दे जो हिंदू लड़कियों के लिए आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट कर रहे हैं। उनके मुताबिक, केंद्रीय एजंसियों सर्ट-इन इस मामले में आगे की कार्रवाई के लिए राज्यों की पुलिस के साथ समन्वय कर रही है। ‘बुली बाई’ और ‘सुल्ली डील्स’ ऐप मामले ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरनी शुरू की है और यह बात सामने आई कि महिलाएं इंटरनेट पर कितनी असुरक्षित हैं।

आनलाइन उत्पीड़न

ऐसे ऐप और सोशल मीडिया मंचों पर विभिन्न समुदायों की महिलाओं को सोशल मीडिया पर निशाना बनाया गया। उनकी तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ की गई या फिर उन्हें सरेआम गाली दी गई। सोशल मीडिया पर सक्रिय कई महिलाओं ने ऐसे संदेश के स्क्रीनशाट साझा किए जिनमें उन्हें गालियां दी गईं। बुल्ली बाई ऐप पर ऐसी महिलाओं की आनलाइन बोली लगाई गई जो समाज में अपने समुदाय और वंचित लोगों की आवाज बनी हैं। इस ऐप को बनाने के आरोप में जिन आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, वे सभी युवा हैं और पढ़ाई कर रहे हैं।

हालांकि इनके मन में नफरत के बीज बोने वाले असली गुनाहगार गिरफ्त से बाहर हैं। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के मुताबिक मार्च 2021 के अंत तक भारत में लगभग 82.5 करोड़ इंटरनेट यूजर थे। उनमें से अधिकांश वास्तविक हैं, जिनमें शरारती तत्वों की संख्या बहुत कम है। लेकिन ऐसे शरारती तत्वों में राष्ट्र, उसकी राजनीति, अर्थव्यवस्था और नागरिकों के व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में तबाही मचाने की घातक क्षमता होती है। ऐसे तत्व देश के नाजुक सामाजिक ताने-बाने पर दबाव डाल सकते हैं, जैसा कि ओपन-सोर्स ऐप बुली बाई में देखा जा सकता है, जिसे वेब प्लेटफार्म गिटहब पर होस्ट किया गया था। इस ऐप के ट्विटर हैंडल पर दी गई जानकारी में दावा किया गया है कि इसका निर्माता ‘केएसएफ खालसा सिख फोर्स’ है, जबकि एक अन्य ट्विटर हैंडल ‘खालसा सुप्रीमैसिस्ट’ इसका फालोअर था।

छोटे शहरों तक जाल

कड़वी सच्चाई यह है कि साइबर ब्लैकमेलिंग, इंटरनेट पर परेशान करना और डराना-धमकाना बड़ा मुद्दा बन गया है, जिससे महिलाओं और उनके परिवारों को तनाव झेलना होता है। यह सिर्फ महानगरों तक सीमित नहीं है या किसी विशेष जाति या समुदाय तक ही नहीं, छोटे शहर भी बुरी तरह प्रभावित हैं। एनसीआरबी के आंकड़ें हैं कि वर्ष 2020 के दौरान भारत में कुल साइबर अपराध 50,035 थे और विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ अपराध केवल 10,405 थे। कई बार महिलाएं समाज में बदनामी के डर से भी शिकायत नहीं करतीं।

समूहों की बारीक योजना

साइबर जगत के ‘ट्रैड्स’ यानी परंपरावादी समूह बारीकी से अपनी योजनाएं बनाते हैं और सधे अंदाज में निशाना बनाते हैं। सोशल मीडिया पर इस तरह के हजारों खाते मिल जाते हैं। इनमें से कुछ के तो लाखों फालोवर हैं। ट्विटर पर इनमें से शायद ही कोई ब्लू टिक वाला सत्यापित खाता होगा, लेकिन इनमें से कई खातों की ट्वीट को कुछ मशहूर नाम वाले खाते लाइक और रीट्वीट जरूर करते हैं।

ये इतने चरमपंथी विचारों के होते हैं कि किसी को नहीं बख्शते। जाति को लेकर इनके विचार सिर्फ किसी वर्ग विरोधी होने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ये एक तरह की नस्ली श्रेष्ठता में विश्वास रखते हैं। कुछ तथ्य चर्चा में आए दोनों ऐप को गिटहब ने ब्लाक कर दिया है। इस मामले में मुंबई, बंगलुरू और उत्तराखंड से गिरफ्तारियां हुई हैं और पता चला है कि इसके तार नेपाल से जुड़े हैं। गिटहब प्लेटफार्म पर उपयोक्ता अपने ऐप के कोड अपलोड करते हैं, ताकि दूसरे डेवलपर उनका इस्तेमाल कर सकें और समीक्षा कर सकें।

‘ट्रैड्स’ यानी परंपरावादी न सिर्फ ट्विटर बल्कि फेसबुक, टेलीग्राम और रेडिट जैसे मंचों पर भी सक्रिय हैं, जहां ये ना सिर्फ नफरत भरी बातें करते हैं बल्कि ऐसी भाषा और ग्राफिक का प्रयोग करते हैं जो भद्दी और आपराधिक होती हैं। 2020 में ट्विटर पर ऐसे ही एक खाते से बंगलुरू की तत्कालीन पुलिस अधिकारी डी रूपा, फिर पूर्व राज्यपाल स्वराज कौशल को निशाना बनाया गया।

क्या कहते हैं जानकार

ये पूरी तरह जांच एजंसी पर निर्भर करता है कि वो किस मामले को कितना तरजीह देती है। दूसरे किसी मामले को सुलझाना इस बात पर भी निर्भर करता है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म से कितना सहयोग मिल पा रहा है। भारत सरकार ने इस संबंध में कानून सख्त किए हैं।

  • पीके जैन, सेवानिवृत्त आइपीएस

सभी पक्ष जो इस जांच में शामिल हैं, उन्हें संवेदनशील बनाने की जरूरत है। ये अपराधी बहुत शातिर हैं और ये लड़कियों, महिलाओं और बच्चों की जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं। ऐसे साइबर अपराधियों को रोकने के लिए आपराधिक न्याय व्यवस्था के विभिन्न अंगों और समाज के बीच समन्वय व सहयोग भी जरूरी है।

  • मीरा बोरवनकर,महाराष्ट्र की पूर्व पुलिस आयुक्त

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