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दो महीने में 80 लोगों की जान ली मानसून ने

ओमप्रकाश ठाकुर

देवभूमि हिमाचल में इस मानसून में अब तक की सबसे ज्यादा तबाही मची और जानें गर्इं। दो महीनों में प्रदेश में मानसून की वजह से आई कुदरती आपदाओं में कारगिल युद्ध में शहीद हुए प्रदेश के जवानों से ज्यादा मौतें हुर्इं। संभवत: इससे पहले मानसून में प्राकृतिक आपदाओं से इतनी ज्यादा मौतें कभी नहीं हुई हैं। जिला किन्नौर में ही भूस्खलन की वजह से दो बड़े हादसे हो गए हैं।

लाहौल स्पीति में चंद्रभागा नदी पर पहाड़ गिर पड़ा और चंद्रभागा या चिनाब नदी का बहाव रोक दिया। यहां पर बड़ी झील बन गई और नीचे बसे गांवों व उदयपुर तक खतरे की जद में आ गए। यह तो गनीमत है कि नदी के बहाव ने खुद रास्ता बनाया और कुछ घंटों बाद नदी का बहाव चलने लगा। लेकिन शुरू के पांच छह घंटों में देश भर की निगाहें चंद्रभागा नदी पर टिक गई। लोगों को पारचू नदी पर बनी झील को वो दौर याद आ गया जब पारचू नदी की झील टूटी थी और सतलुज में तबाही का मंजर लोगों ने देखा था।

चंद्रभागा को लेकर भी इसी तरह का खौफ पैदा हो गया था। कांगड़ा में तो मानसून के शुरू होने के कुछ दिन बाद ही तबाही मच गई थी।इस हादसे में आठ लोगों की जानें चली गई थीं। तीन शव अभी भी नहीं निकाले जा सके हैं। इन दो महीनों में भूस्खलन से अब तक 45 जानें जा चुकी हैं। अचानक आई बाढ़ की बजह से मलबे में दबने से दस लोगों की मौत हुई है जबकि 25 लोग अलग-अलग जगहों में बहने से जान गंवा चुके हैं। इस तरह लगभग दो महीनों में मानसून में 80 मौतें हो चुकी है। इतनी मौतें तो कारगिल के तीन महीने के करीब चले युद्ध में प्रदेश के जवानों की नहीं हुई थी। कारगिल में प्रदेश के 52 जवान शहीद हुए थे।

आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से जारी इन आंकड़ों सड़क हादसों व अन्य घटनाओं से हुई मौतों का आंकड़ा शामिल नहीं है। अगर इन तमाम मौतों को जोड़ दिया जाए तो 13 जून से लेकर अब तक प्रदेश में 272 मौतें हो चुकी हैं। इनमें सड़क हादसों में हुई 127 मौतें शामिल है। प्रदेश में दरक रहे पहाड़ों और अचानक आ रही बाढ़ को लेकर अब देश भर के नामी वैज्ञानिक संस्थानों ने हिमाचल का रुख कर दिया है। कांगड़ा से लेकर किन्नौर व सिरमौर तक देश के भूगर्भ विज्ञानी जायजा लेने आ चुके है।

चंडीगढ़ से भूगर्भ विज्ञानियों की टीम जिला किन्नौर में तीन दिन तक जायजा लेकर लौट चुकी है। इसी तरह जिला कांगड़ा के बोह में भी बड़ा हादसा हुआ था। इस हादसे में आठ नौ घर मलबे के नीचे दब गए थे और दस के करीब लोग मलबे के नीचे दब गए थे। यहां का भी विज्ञानी जायजा ले गए हंै। चंद्रभागा में जहां पर नदी का बहाव रुका था, वहां पर केंद्रीय जल आयोग के निदेशक एनएन राय सोमवार को दिल्ली लौट गए हैं।

वह अपने विशेषज्ञ दल के साथ 15 अगस्त को ही मौके पर जायजा ले आए। हालांकि 15 अगस्त को पूरे देश में अवकाश में होता है लेकिन आपदाओं के मद्देनजर विशेषज्ञों ने यहां का दौरा किया। समझा जा सकता है कि पहाड़ की इन आपदाओं ने देश दुनिया में किस तरह की सिहरन पैदा कर रखी है। अब रिपोर्ट बनाने का दौर शुरू होने जा रहा है। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या इन रिपोर्टों के बनने के बाद भी पहाड़ का सीना छलनी होने से और नदियों व नालों में होने वाले अवैध खनन को रोका जा सकेगा। जिस तरह से नेताओं, नौकरशाहों और उद्योगपतियों व ठेकेदारों ने पहाड़ को खोदने का अभियान चला रखा है, उससे लगता नहीं है कि विज्ञानियों की ये रिपोर्ट पहाड़ को छलनी होने से बचा सकेगी। ये विज्ञानी सरकार को अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट दे भी रहे हैं। लेकिन जैसे ही ये हादसे जेहन से निकल जाते है ये रिपोर्ट फाइलों में दब कर रह जाती हैं।

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