पूर्वाग्रह से दुराग्रह तक
देश ने जाति-आधारित राजनीति को पनपते और उसके द्वारा सामाजिक विभेद बढ़ते देखा है। जब भी बड़े स्तर पर प्रजातंत्र की मूल भावना के साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष ढंग से राजनीतिक दल खिलवाड़ करते हैं तो वे देश-हित भूल जाते हैं। यदि जाति प्रथा की समाप्ति के प्रयासों को रोका न गया होता, तो शायद आज यह इतिहास बन गई होती।
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