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दिल्ली पुलिस ने किसान नेताओं के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया

दिल्ली पुलिस ने किसान नेताओं के खिलाफ जारी किया लुक ऑउट नोटिस. साथ ही दिल्ली पुलिस ने ट्रैक्टर रैली को लेकर पुलिस के साथ हुए समझौते को तोड़ने के लिए योगेंद्र यादव, बलदेव सिंह सिरसा, बलबीर एस.राजेवाल समेत कम से कम 20 किसान नेताओं को नोटिस जारी किया है.
फरवरी को संसद मार्च नहीं करेंगे किसान, ट्रैक्टरी रैली में हुई हिंसा पर जताया खेद
ट्रैक्टर रैली में भड़की हिंसा के बाद किसान आंदोलन कमजोर पड़ता नजर आ रहा है. हिंसा को शर्मनाक बताते हुए दो किसान संगठनों ने आंदोलन से अपना रिश्ता तोड़ लिया और बॉर्डर से लौटने लगे. वहीं बुधवार को कई किसान संगठनों ने ट्रैक्टर रैली को लेकर बैठक की. बैठक में किसान नेताओं ने तय किया कि 1 फरवरी बजट के दिन संसद मार्च नहीं करेंगे.
भारतीय किसान यूनियन (आर) के नेता बलबीर एस राजेवाल ने कहा, शहीद दिवस के दिन हम पूरे देश में सार्वजनिक रैलियां करेंगे. हम एक दिन का उपवास भी रखेंगे. उन्होंने बताया 26 जनवरी को हुई हिंसा के कारण 1 फरवरी को संसद मार्च स्थगित कर दिया गया है.

किसान नेता दर्शन पाल ने भी बताया, एक फरवरी को बजट पेश किए जाने के दिन संसद मार्च की योजना रद्द कर दी गयी है. किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा पर स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव ने कहा, लाल किला की घटना पर हमें खेद है और हम इसकी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं.

किसान नेता दर्शन पाल ने कहा, 30 जनवरी को देश भर में आम सभाएं व भूख हड़ताल आयोजित की जाएंगी. उन्होंने आगे कहा, हमारा आंदोलन आगे भी जारी रहेगा. किसान नेता शिवकुमार कक्का ने हिंसा के संबंध में कहा, हमारे पास वीडियो क्लिप हैं, हम पर्दाफाश करेंगे कि किस प्रकार हमारे आंदोलन को बदनाम करने की साजिश रची गयी.

गौरतलब है कि दिल्ली में मंगलवार को ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा में 300 पुलिस कर्मियों के घायल होने के बाद इस मामले में दर्ज की गई प्राथमिकी में राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, दर्शन पाल और गुरनाम सिंह चढ़ूनी समेत 37 किसान नेताओं के नाम हैं. वहीं दो किसान संघों ने कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन से बुधवार को अलग होने का फैसला किया.

दिल्ली पुलिस ने कहा कि 25 प्राथमिकी दर्ज की गई हैं और 19 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है. जबकि 50 लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है. हिंसा में शामिल लोगों की पहचान के लिये विभिन्न वीडियो और सीसीटीवी फुटेज देखी जा रही हैं और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

पुलिस ने कहा कि समयपुर बादली में दर्ज प्राथमिकी में टिकैत, यादव, दर्शन पाल और चढ़ूनी समेत 37 किसान नेताओं के नाम हैं और उनकी भूमिका की जांच की जाएगी. प्राथमिकी में आईपीसी की कई धाराओं का उल्लेख है जिनमें 307 (हत्या का प्रयास), 147 (दंगों के लिए सजा), 353 (किसी व्यक्ति द्वारा एक लोक सेवक / सरकारी कर्मचारी को अपने कर्तव्य के निर्वहन से रोकना) और 120बी (आपराधिक साजिश) शामिल हैं.

किसान संघ लगातार यह आरोप लगा रहे हैं कि असामाजिक तत्वों ने कृषि कानूनों के खिलाफ उनके शांतिपूर्ण प्रदर्शन को नष्ट करने के लिये हिंसा की साजिश रची थी, हालांकि मंगलवार को हुई हिंसा को लेकर बड़े पैमाने पर हो रही आलोचना का असर दिख रहा है और भारतीय किसान यूनियन (भानु) और ‘ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी' ने दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे विरोध प्रदर्शन से हटने का फैसला किया है.



खत्म होगा आंदोलन! किसानों में पड़ी फूट, 20 किसान नेताओं को नोटिस, दिल्ली पुलिस ने तीन दिन में मांगा जवाब

गणतंत्र दिवस (Republic Day) के अवसर पर राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्ली में किसानों द्वारा की गई हिंसा (Violence in Farmers Protest) के बाद किसानों में फूट नजर आने लगी है. दो किसान संगठनों (Farmers Protest) ने खुद को इस आंदोलन से अलग करने का फैसला किया है.

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीएम सिंह (VM Singh) ने इस संबंध में कहा है कि उनका संगठन इस आंदोलन से खुद को अलग कर रहा है. यही नहीं भारतीय किसान यूनियन (भानू गुट) ने भी किसना आंदोलन खत्म करने की घोषणा की है.

इस बीच दिल्ली पुलिस ने कहा है कि ट्रैक्टर रैली को लेकर पुलिस के साथ हुए समझौते को तोड़ने के लिए योगेंद्र यादव, बलदेव सिंह सिरसा, बलबीर एस.राजेवाल समेत कम से कम 20 किसान नेताओं को नोटिस जारी किया है. उन्हें 3 दिनों में जवाब देने के लिए कहा गया है.

इधर दिल्ली पुलिस ने गणतंत्र दिवस के दिन किसानों की ट्रैक्टर परेड में हुई हिंसा के सिलसिले में राकेश टिकैत, योगेन्द्र यादव और मेधा पाटकर सहित 37 किसान नेताओं के खिलाफ नामजद प्राथमिकी दर्ज करने का काम किया है. साथ ही इनके खिलाफ दंगा, आपराधिक षड्यंत्र, हत्या का प्रयास सहित भादंसं की विभिन्न धाराओं में आरोप लगाया है.

पुलिस का कहना है कि ट्रैक्टर परेड में हिंसा में किसान नेताओं की भूमिका की जांच की जाएगी. हिंसा और तोड़-फोड़ में दिल्ली पुलिस के 394 कर्मी घायल हुए हैं जबकि एक प्रदर्शनकारी की मौत हुई है. पुलिस ने हिंसा के सिलसिले में अब तक 25 प्राथमिकी दर्ज की हैं. समयपुर बादली थाने में अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने हिंसा के दौरान पुलिस से पिस्तौल, 10 गोलियां और आंसू गैस के दो गोले लूट लिए.

वीएम सिंह ने कहा : किसान नेता वीएम सिंह ने कहा कि गणतंत्र दिवस के दिन राजधानी दिल्ली में जो हुआ इन सब में सरकार की भी गलती को नकारा नहीं जा सकता है. उन्होंने कहा कि कोई 11 बजे की जगह 8 बजे निकल रहा है तो सरकार क्या कर रही थी ? जब सरकार को इस बात की जानकारी थी कि लाल किले पर झंडा फहराने वाले को कुछ संगठनों ने करोड़ों रुपये देने की बात की थी तब सरकार ने कार्रवाई क्यों नहीं की ? आगे श्री सिंह ने कहा कि हम किसी ऐसे व्यक्ति के साथ कृषि कानूनों के विरोध को आगे नहीं बढ़ाने का काम नहीं कर सकते जिसकी दिशा साफ नहीं हो. इसलिए, मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं...मैं और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति इस विरोध को तुरंत वापस लेने का ऐलान करते हैं.

किसानों की संख्‍या में कमी : इधर दो महीने से दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानोंकी संख्या में कमी नजर आ रही है. यदि किसानों के घर वापसी का सिलसिला जारी रहा तो किसान संगठन संसद मार्च और कृषि कानून के संदर्भ में सरकार पर पहले की तरह दबाव बनाने में कामयाब नहीं हो पाएंगे.


Kisan Andolan Live: किसान नेताओं के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने जारी किया लुकआउट नोटिस

Kisan Andolan Live Updates; गणतंत्र दिवस के दिन हुई हिंसा के बाद से ही किसान जन समर्थन खो रहे हैं. इसके साथ ही अब सरकार सख्ती से पेश आ रही है.


दिल्ली पुलिस बताया है कि ने इमीग्रेशन की मदद से किसान नेताओं के खिलाफ लुकआउट नोटिस (LOC) जारी किया गया है.

शिरोमणि अकाली दल ने दिल्ली में हिंसा को बताया निंदनीय तो CM बोले शर्म से झुक गया सिर





लाल किले पर हुई हिंसा ने मुश्किल की किसान आंदोलन के लिए आगे की राह

26 जनवरी को किसानों का आंदोलन पूरी तरह से हिंसक हो गया. आंदोलनकारियों ने दिल्ली की सड़कों पर जिस तरह से उपद्रव किया और किसानों के एक समूह ने लाल किले के अंदर घुसकर सिखों के धार्मिक झंडे निशान साहब को फहराया. इसके बाद सत्तापक्ष से लेकर विपक्षी दलों के बयान से किसान संगठन दबाव और बैकफुट पर खड़े नजर आ रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आगे आंदोलन की राह क्या होगी और एक फरवरी को संसद कूच के फैसले पर किसान संगठन क्या यू-टर्न लेंगे? 

  • गणतंत्र दिवस पर किसान आंदोलन हिंसक हुआ
  • 26 जनवरी की घटना से किसान नेता बैकफुट पर
  • संसद कूच करने के प्लान पर किसान कश्मकश में

कृषि कानून के खिलाफ पिछले दो महीने से चल रहा शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन कल यानी 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा-उपद्रव के बाद सवालों के घेरे में है. सवाल इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे नेताओं पर उठाए जा रहे हैं. किसान नेता लाल किले और आईटीओ पर हुई हिंसा के लिए परेड में शामिल उपद्रवी तत्वों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं लेकिन मीडिया में दिल्ली की सड़कों पर तांडव की जो तस्वीरें आई हैं, वो इस आंदोलन के शांतिपसंद समर्थकों को चौंकाने वाली हैं. ऐसे में ये सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या ये आंदोलन अब आगे चल पाएगा और अगर हां तो फिर कैसे?

शांतिपूर्ण आंदोलन को अभूतपूर्व समर्थन पिछले दो महीने से दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डरों पर चल रहे किसानों के आंदोलन को लोगों का जो सपोर्ट मिला है, वो अभूतपूर्व है. इस समर्थन का ही नतीजा था कि केंद्र सरकार किसानों के सख्त तेवर दिखाते रहने के बावजूद बार-बार बातचीत की टेबल पर बैठ रही थी. आंदोलन को कुचलने से ज्यादा किसानों की मनुहार पर जोर दिया जा रहा था. अगर कुछेक बयानों को छोड़ दिया जाए तो आधिकारिक रूप से सरकार और सत्तारूढ़ बीजेपी ने भी आंदोलन पर कोई गंभीर सवाल नहीं उठाया. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक का पूरा जोर विपक्ष पर भोले-भाले किसानों को बरगलाने के आरोप पर ही रहा. लेकिन 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद माहौल बदल सकता है.

लाल किले की घटना से उठे सवाल लाल किले से जिस तरह की तस्वीरें आईं उससे पूरा देश स्तब्ध रह गया. ऐसा पहली बार हुआ कि देश की आन-बान-शान से जुड़ी लाल किले की प्राचीर पर राष्ट्रध्वज तिरंगे की जगह आंदोलनकारियों या किसी धार्मिक पहचान से जुड़ा झंडा लगाया गया हो. जगह-जगह पुलिसकर्मियों पर हमले की जो तस्वीरें आई हैं वे भी दुखी करने वाली हैं. दिल्ली पुलिस के अधिकतर जवान पंजाब-हरियाणा-पश्चिमी यूपी के किसानों के ही बेटे हैं. इनपर हमला, मारपीट की घटनाएं चौंकाने वाली हैं.

सरकार खामोश, विपक्ष हुआ किनारे दिल्ली में इतना सब होने के बावजूद सरकार और उसके मंत्रियों ने व्यक्तिगत रूप से घटना की निंदा नहीं की. बात-बात पर ट्विटर के जरिए अपनी राय व्यक्त करने वाले कद्दावर मंत्रियों का ट्विटर अकाउंट इस घटना को लेकर मौन ही साधे रहा. साफ है कि सरकार अब भी किसान नेताओं या उनके आंदोलन को सीधे टारगेट करने से बच रही है. सरकार के इस रुख के पीछे राजनीतिक वजहें भी हो सकती हैं लेकिन जहां तक आम जनमानस की बात है वो इसे लेकर सोशल मीडिया व अन्य मंचों पर मुखर है. इसे किसान आंदोलन के लिए झटका कहा जा सकता है क्योंकि वो जनता के बीच अपना समर्थन खो सकता है. यही नहीं जो विपक्ष कल तक एकजुट होकर इस आंदोलन के पीछे खड़ा था वो लाल किले की घटना की निंदा कर रहा है. जो पार्टियां कल तक किसान आंदोलन की अगुवाई का मौका तलाश रही थीं, अब वे उससे पीछा छुड़ाएंगी क्योंकि लाल किले की घटना का राजनीतिक नुकसान उन्हें देशभर में उठाना पड़ सकता है.    

किसान नेताओं का बयान-उपद्रवी आंदोलन का हिस्सा नहीं किसान संगठन और उनके नेता भी इस सच्चाई को समझ रहे हैं. किसान नेता एक सुर में खुद को इस उपद्रव से अलग करने की कोशिश कर रहे हैं. वे लगातार कह रहे हैं कि जिन लोगों ने लाल किले पर धावा बोला या तय रूट से इतर निकलकर हंगामा किया वे आंदोलन से सीधे जुड़े नहीं हैं. संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा भी नहीं हैं. किसान नेता राकेश टिकैत ने कल बवाल शुरू होते ही कह दिया था कि जो लोग बवाल कर रहे हैं उन्हें पहचान लिया गया है और वो पहले से ही उनकी नजर में थे.

योगेंद्र यादव ने लाल किले की घटना को शर्मनाक बताया है जबकि हन्नान मोल्लाह भी ट्रैक्टर रैली में बाहरी लोगों के शामिल होने की बात कर रहे हैं. बजट वाले दिन यानी एक फरवरी को किसानों को संसद तक पैदल मार्च करना था. अब वे इसे टाल सकते हैं ताकि फिर से वे टकराव की मुद्रा में न दिखें. किसान नेताओं ने कहा है कि वो अपनी अगली रणनीति एक दो दिन में तय करेंगे. 

कृषि मामलों के जानकार देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि गणतंत्र दिवस की घटना का पूरा इल्ज़ाम किसानों के मत्थे मढ़ने की कोशिश की जा रही है, जो गलत है. वो मानते हैं कि इस घटना से आंदोलन को जरूर धक्का लगा है और किसान दुखी भी हैं, लेकिन किसान जिस तरह से अपनी मांग पर अड़े हैं उससे उनके नजरिए में कोई बदलाव नहीं आया है. किसान आंदोलन से ही उनका समाधान निकलेगा, इस बात को किसान बेहतर तरीके से समझ रहे हैं. ऐसे में किसान अपने आंदोलन को खत्म नहीं करेंगे बल्कि इस घटना से सबक लेते हुए आगे की दशा और दिशा तय करेंगे.

जानिए, लाल किले पर तिरंगे की जगह लहराए गए निशान साहिब की कहानी

सिख किसानों ने विरोध करते हुए अपना धार्मिक ध्वज 'निशान साहिब' लाल किले पर उस जगह लगा दिया जहां से 15 अगस्त को प्रधानमंत्री झंडारोहण करते हैं. आइए आपको निशान साहिब का पूरा इतिहास बताते हैं.

72वें गणतंत्र दिवस के मौके पर कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन (Kisan andolan) कर रहे किसान अलग-अलग बॉर्डर से राजधानी दिल्ली में दाखिल हो चुके हैं. अलग-अलग हिस्सों से किसान और पुलिस के बीच झड़प और जबरन बैरिकेड टूटने की तस्वीरें लगातार सामने आ रही हैं. इसी बीच सिख किसानों ने विरोध करते हुए अपना धार्मिक ध्वज 'निशान साहिब' (Nishan Sahib) लाल किले पर उस जगह लगा दिया जहां से 15 अगस्त को प्रधानमंत्री झंडारोहण करते हैं. आइए आपको निशान साहिब का पूरा इतिहास बताते हैं.

क्या है निशान साहिब निशान साहिब सिख धर्म के लोगों का एक पवित्र ध्वज है. यह त्रिकोणीय ध्वज कपास या रेशम के कपड़े का बना होता है. इसके सिरे पर एक रेशम की लटकन होती है. इस झंडे के केंद्र में एक खंडा चिह्न भी होता है. खंडे का रंग नीला होता है. जिस ध्वजडंड पर इसे फहराया जाता है, उसमें भी ऊपर की तरफ दोधारी खंडा (तलवार) होता है. ध्वजडंड के कलश पर खंडे की मौजूदगी इस बात का प्रतीक है कि सिख के अलावा किसी भी धर्म का व्यक्ति धार्मिक स्थल में प्रवेश करने के लिए स्वतंत्र है और बिना किसी रुकावट ईश्वर की आराधना कर सकता है.

निशान साहिब को खालसा पंथ का परंपरागत चिह्न माना जाता है. गुरुद्वारे के शीर्ष या ऊंचाई पर फहराए जाने की वजह से इसे दूर से ही देखा जा सकता है. निशान साहिब को खालसा पंथ की मौजूदगी का प्रतीक माना जाता है. बैसाखी के शुभ अवसर पर इसे नीचे उतार लिया जाता है और दूध-जल से पवित्र किया जाता है. निशान साहिब का केसरिया रंग जब फीका पड़ जाता है तब एक नया ध्वज लगाया जाता है. सिख समाज में निशान साहिब का बहुत सम्मानित स्थान है और इसे बहुत सम्मान के साथ रखा जाता है.

निशान साहिब का इतिहास ऐसा कहा जाता है कि निशान साहिब पहले लाल रंग का होता था. लेकिन बाद में इसका रंग बदलकर सफेद कर दिया गया. कुछ समय बाद इस पर केसरी रंग चढ़ा दिया गया. 1709 में सबसे पहले गुरु हरगोबिन्द जी ने अकाल तख्त पर केसरी रंग का निशान साहिब फहराया था. बहरहाल, निहंग द्वारा प्रबंधित किए गए गुरुद्वारों में निशान साहिब के ध्वज का रंग नीला होता है.




सिंघु बॉर्डर से लौटने लगे किसान, अब मनाने में जुटे नेता, दिल्ली बवाल से दुखी अन्नदाता

दिल्ली में बवाल और लाल किला की घटना के बाद किसानों की घर वापसी शुरू हो गई है। गणतंत्र दिवस पर होने वाली इन घटनाओं को जहां किसान नेता खुद गलत मान रहे हैं, वहीं किसान भी लाल किला पर तिरंगा से अलग झंडा फहराने से काफी निराश हैं। इसलिए हरियाणा के किसानों ने मंगलवार की रात ही घर वापसी शुरू कर दी थी।
पंजाब के किसानों के लौटने का सिलसिला शुरू होने से कतार नहीं टूट रही है। जहां नेशनल हाईवे 44 पर करीब 60 हजार ट्रैक्टर के साथ दो लाख किसान डटे थे, वहीं अब हाईवे पर 10 हजार से कम ट्रैक्टरों के संग किसान बचे हैं। अभी किसान वापस लौटने में लगे हैं। यह देखते हुए किसान संगठनों के नेता उनको रोकने में लगे हैं और अब मंच तक से अपील करनी पड़ रही है। कृषि कानूनों के विरोध में गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड निकालने के एलान के बाद पिछले करीब 10 दिन से किसानों का ट्रैक्टर लेकर पहुंचने का सिलसिला शुरू था।

सबसे ज्यादा किसान सिंघु बॉर्डर पर पहुंचे, जहां हरियाणा व दिल्ली के करीब 60 हजार ट्रैक्टर के अलावा दो लाख किसान जमा थे। जिस तरह से गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड में दिल्ली के अंदर बवाल हुआ है और लाल किला पर किसी धर्म विशेष का झंडा फहराया गया है, उससे किसानों व आम आदमी के बीच काफी गलत संदेश गया है और उसका असर अब आंदोलन पर दिखाई देने लगा है। नेशनल हाईवे 44 पर जहां मंगलवार को पैदल चलने तक की जगह नहीं थी। वहीं केजीपी-केएमपी से आगे तक बुधवार सुबह को नेशनल हाईवे खाली हो गया। ज्यादातर वह किसान वापस घर चले गए जो केवल परेड के लिए आए थे। वहीं पहले से धरनास्थल पर जमा कुछ किसान भी वापसी की राह पकड़े हैं।

किसान नेताओं को खुद भी लगता है कि जिस तरह से किसानों की घर वापसी शुरू हो गई है, वह आंदोलन के लिए सही नहीं है। अब किसानों को घर वापस जाने से रोकने के लिए किसान संगठनों के नेता जुटे हैं। किसान संगठनों के नेताओं ने केएमपी-केजीपी गोलचक्कर के पास कुछ किसानों को रोकने का काफी प्रयास किया लेकिन वह दोबारा वापस आने की बात कहकर पंजाब चले गए। इसके अलावा कुंडली बॉर्डर पर बने मुख्य मंच से किसान नेताओं को लगातार यही अपील करनी पड़ी कि किसान घर वापस न जाए। यहां तक कहा गया कि जितने किसान धरनास्थल पर मौजूद है, वह अपने परिजनों और जानकारों को वापस जाने से रोके। 

केजीपी-केएमपी का गोल चक्कर खाली।

धरनास्थल पर मौजूद किसानों के पास घर से आने लगे फोन
कुंडली बॉर्डर पर कुछ किसान अपने परिवारों के साथ डेरा डाले हुए है तो कुछ किसान अकेले ही वहां आए हैं। ऐसे ही पंजाब व हरियाणा दोनों राज्यों के किसानों के पास घर से फोन आने लगे हैं। उनसे जहां दिल्ली की घटनाओं की पूरी जानकारी लेने के साथ ही घर वापस आने के लिए भी कहा जा रहा है। धरनास्थल पर डटे काफी किसानों पर परिवार वालों का दबाव आने लगा है। 

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जीटी रोड पानीपत की तरफ खाली। - फोटो : अमर उजाला
बाईपास पर अब भी जमा किसान, ट्रैक्टर परेड वाले ही वापस लौटे
उधर, बुधवार सुबह टीकरी बॉर्डर पर वे किसान जमे रहे, जो लंबे समय से आंदोलन में भाग लेने आए थे। टीकरी बॉर्डर के अलावा, रोहतक बाईपास पर किसानों के ट्रैक्टर व ट्रॉली पहले की तरह खड़े हैं। किसानों का कहना है कि संयुक्त किसान मोर्चा आंदोलन को लेकर जो निर्णय लेगा, उसी का अनुशरण करेंगे।

मैं जब धरनास्थल पर आया तो यहां काफी भाईचारा देखा था। किसान ट्रैक्टर परेड में कुछ शरारती तत्वों ने बवाल किया और लालकिला पर धार्मिक झंडा फहराया है। इससे आंदोलन की काफी बदनामी हुई है और इसका काफी गलत संदेश गया है। इसका परिणाम भी गलत ही निकलेगा।

जिस तरह से ट्रैक्टर परेड में बवाल हुआ और लाल किला पर झंडा फहराया है। यह काफी गलत हुआ है और इससे किसान आंदोलन को बहुत ठेस पहुंची है। इससे लग रहा है कि हमारे मुद्दे भटक गए हैं। इस तरह से नहीं होना चाहिए था। किसान लौट रहे हैं। जितेंद्र सिंह, किसान।
 
गणतंत्र दिवस की ट्रैक्टर परेड के लिए किसानों का बड़ा हुजूम उमड़ा था लेकिन अब सभी वापस जा रहे हैं। इन सभी किसानों को किसी भी तरह से रोकने का प्रयास किया जा रहा है। दिल्ली में जिस तरह से हुआ है, उसे हम खुद भी गलत मानते है। किसानों को रोको किसी भी तरह। - गुरनाम सिंह चढूनी, किसान नेता।

धरना खत्म, ट्रैक्टर रैली में हिंसा, किसान नेता ने कहा- वो तो रावण निकले

किसान आंदोलन के बीच 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकाली गई। इस दौरान हिंसा की कई वारदातें सामने आईं। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर देश में हंगामा मचा हुआ है। वहीं भारतीय किसान यूनियन (भानु) गुट के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने बताया है कि इसके पीछे षड्यंत्र किसका है। यही नहीं, भानु प्रताप सिंह ने बीकेयू (भानु) धरना समाप्त करने का भी इशारों में ऐलान कर दिया है। एनबीटी ऑनलाइन से हिमांशु तिवारी ने भानु प्रताप सिंह से बातचीत की है।


Kisan Andolan Live: 20 किसान नेताओं को दिल्ली पुलिस ने भेजा नोटिस, 3 दिन में मांगा जवाब

Kisan Andolan Live Updates; गणतंत्र दिवस के दिन हुई हिंसा के बाद से ही किसान जन समर्थन खो रहे हैं. इसके साथ ही अब सरकार सख्ती से पेश आ रही है.

किसान आंदोलन ब्रेकिंग


ट्रैक्टर रैली के दौरान लाल किले पर हुई हिंसा के बाद हरियाणा में विरोध कर रहे किसान बुधवार को अपना समर्थन खोते दिखे. हरियाणा के रेवाड़ी जिले में कम से कम 15 गांवों की एक पंचायत ने बुधवार को तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर डेरा डाले किसानों से 24 घंटे के भीतर सड़क खाली करने को कहा.

 रेलवे अधिकारियों का बयान


रेवाड़ी के पुलिस अधीक्षक अभिषेक जोरवाल ने बताया, "प्रदर्शनकारियों ने मसानी कट विरोध स्थल को खाली कर दिया है और उनमें से कुछ टीकरी चले गए हैं, जबकि कुछ जय सिंहपुरा खेड़ा गांव (हरियाणा-राजस्थान सीमा पर राजस्थान में) गए हैं. कई अन्य लोग घर लौट गए हैं.” उन्होंने कहा कि पिछले कई हफ्तों से राज्य में राजमार्गों पर कई टोल प्लाजा के पास घेराबंदी कर रहे किसानों ने शाम तक विरोध स्थलों को खाली कर दिया .

आखिर क्यों हुई हिंसा ?

नये कृषि कानूनों को लेकर करीब दो माह से चिल्ला बॉर्डर पर धरना दे रहे भारतीय किसान यूनियन (भानू) ने बुधवार से अपना धरना वापस ले लिया. दिल्ली में मंगलवार को ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसक घटना तथा राष्ट्र ध्वज के अपमान से आहत होकर भानु गुट ने धरना वापस लिया है. वहीं लोक शक्ति दल ने अपना विरोध-प्रदर्शन जारी रखने की बात कही है. नोएडा यातायात पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि बीकेयू (भानु) के विरोध वापस लेने के साथ ही चिल्ला बॉर्डर के माध्यम से दिल्ली-नोएडा मार्ग 57 दिनों के बाद यातायात के लिए फिर से खुल गया.मालूम हो कि भारतीय किसान यूनियन (भानू) नये कृषि कानूनों के विरोध में चिल्ला बॉर्डर पर धरना दे रहा था. इस धरने की वजह से नोएडा से दिल्ली जाने वाला रास्ता करीब 57 दिनों से बंद था.

दिल्ली पुलिस ने लाल किले पर हुई हिंसा के सिलसिले में दर्ज प्राथमिकी में अभिनेता दीप सिद्धू और ‘गैंगस्टर’ से सामाजिक कार्यकर्ता बने लक्खा सिधाना के नाम लिए हैं. अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस ने भारतीय दंड संहिता, सार्वजनिक संपत्ति को क्षति से रोकथाम अधिनियम और अन्य कानूनों की प्रासंगिक धाराओं के तहत उत्तरी जिले के कोतवाली थाने में मामला दर्ज किया है .

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26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर रैली में हुई हिंसा के बाद दिल्ली पुलिस बुधवार सुबह से ही एक्शन में है। पहले 37 किसान नेताओं को रैली की शर्तें तोड़ने का आरोपी बनाते हुए उनके खिलाफ FIR दर्ज की। फिर देर रात 20 किसान नेताओं को नोटिस जारी कर पूछा कि क्यों न आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए, 3 दिन में इसका जवाब दें।

जिन नेताओं को नोटिस दिए गए हैं उनमें से 4 के नाम अभी तक सामने आए हैं। ये नेता हैं योगेंद्र यादव, दर्शन पाल, बलदेव सिंह सिरसा और बलबीर सिंह राजेवाल। पुलिस ने जो नोटिस भेजा है उसमें यह भी कहा है कि गणतंत्र दिवस पर लाल किले में तोड़फोड़ करना एक देश विरोधी हरकत है।

कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का आज 64वां दिन है। टीकरी बॉर्डर पर किसानों का प्रदर्शन जारी है। दूसरी तरफ सुरक्षाबल भी तैनात हैं। - Dainik Bhaskar
कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का आज 64वां दिन है। टीकरी बॉर्डर पर किसानों का प्रदर्शन जारी है। दूसरी तरफ सुरक्षाबल भी तैनात हैं।

हिंसा में घायल पुलिसकर्मियों से मिलेंगे अमित शाह
मंगलवार को हुए उपद्रव में दिल्ली पुलिस के 300 से ज्यादा जवान घायल हो गए। इनमें से कई अब भी अस्पताल में भर्ती हैं। इनमें से कुछ जवानों का हाल जानने के लिए गृह मंत्री अमित शाह आज 2 अस्पतालों का दौरा करेंगे। वे किन-किन अस्पतालों में जाएंगे और कितने बजे जाएंगे, यह अभी साफ नहीं हो पाया है।

टिकैत का धमकी भरा लहजा
ट्रैक्टर रैली में हिंसा को लेकर भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत के खिलाफ FIR हो चुकी है। लेकिन, उनके तेवर नहीं बदले हैं। टिकैत ने अब सरकार को धमकी भरे लहजे में चेतावनी दी है। क्योंकि, गाजीपुर बॉर्डर पर बुधवार रात 8 बजे बिजली काटने से टिकैत गुस्सा हो गए।

टिकैत ने कहा कि 'सरकार दहशत फैलाने का काम कर रही है। इस तरह की कोई भी हरकत पुलिस-प्रशासन न करे। अगर इस तरह की हरकत करेगा तो सारे बॉर्डर वहीं हैं। ठीक है...और वे किसान जो गांवों में हैं वहां पर उनको बता देंगे। फिर अगर कोई दिक्कत होती है तो वहां के जो लोकल के थाने हैं, किसान वहां पर जाएंगे। ये सरकार पूरी तरह ध्यान रख ले। इस तरह की कोई भी हरकत वहां होगी तो पूरी जिम्मेदारी सरकारों की होगी।'

बागपत में पुलिस ने देर रात किसानों को हटाया, लाठीचार्ज की सूचना
दिल्ली पुलिस के साथ ही बुधवार को UP पुलिस भी एक्शन में दिखी। उनसे दिल्ली-सहारनपुर हाइवे पर UP के बागपत जिले के बड़ौत में धरने पर बैठे किसानों को आधी रात को हटा दिया। यहां 40 दिन किसान धरने पर बैठे थे।

खबर तो लाठीचार्ज होने और आंदोलन की कमान संभाल रहे ब्रजपाल सिंह की गिरफ्तारी की भी आई। हालांकि, इन दोनों बातों की पुष्टि नहीं हुई है। उधर, पुलिस की कार्रवाई के बाद बड़ौत के किसान आगे की स्ट्रैटजी बनाने के लिए गुरुवार को पंचायत करेंगे।

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